क्रोध द्वारा मनुष्य स्वयं की क्षति करता है | Hindi Motivational Story
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क्रोध द्वारा मनुष्य स्वयं की क्षति करता है | Hindi Motivational Story |
💕Hello Friends,आपका स्वागत है learningforlife.cc में। सार्वभौम चक्रवर्ती सम्राट् होते हुए भी महाराजा अंबरीष भौतिक सुखों से परे थे और सतोगुण के प्रतीक माने जाते थे। एक दिन वे एकादशी व्रत का पारण करने को थे कि महर्षि दुर्वास अपने शिष्यों के सहित वहां पहुँच गए। अंबरीष ने उनसे शिष्यों सहित भोजन ग्रहण करने का निमंत्रण दिया, जिसे दुर्वासा ने स्वीकार कर कहा, ‘ठीक है राजा, हम सभी यमुना-स्नान करने जाते हैं और उसके बाद प्रसाद ग्रहण करेंगे। महर्षि को लौटने में विलंब हो गया और अंबरीष के व्रत-पारण की धड़ी आ पहुँची।
राजगुरू ने उन्हें परामर्श दिया कि ‘आप तुलसी-दल के साथ जल पीकर पारण कर लें। इससे पारण-विधि भी हो जाएगी और दुर्वासा को भोजन कराने से पूर्व ही पारण कर के पाप से भी बच जाएंगे। अंबरीष ने जल ग्रहण कर लिया। दुर्वासा मुनि लौटे तो उन्होंने योगबल से राजन् का पारण जान लिया और इसे अपना अपमान समझकर महर्षि ने क्रोधित होकर अपनी एक जटा नौंची और अंबरीष पर फेंक दी। वह कृत्या नामक राक्षसी बनकर राजन् पर दौड़ी।
भगवान विष्णु का सुदर्शन-चक्र, जो राजा अंबरीय की सुरक्षा के लिए वहां तैनात रहता था, दुर्वासा को मारने उनके पीछे दौड़ा। दुर्वासा ने इन्द्र, ब्रह्मा और शिव की स्तुति कर उनकी शरण लेनी चाही, लेकिन सभी ने अपनी असमर्थता जताई। लाचार होकर वे शेषशायी विष्णु की शरण गए. जिनका सुदर्शन-चक्र अभी भी मुनि का पीछा कर रहा था। भगवान विष्णु ने भी यह कहकर विवशता जताई कि मैं तो स्वयं भक्तों के वश में हूं।
तुम्हें भक्त अंबरीष की ही शरण में जाना चाहिए. जिसे निर्दोष होते हुए भी तुमने क्रोधवश प्रताड़ित किया है। हारकर क्रोधी दुर्वासा को राजा अंबरीष की शरण में जाना पड़ा। राजा ने उनका चरण-स्पर्श किया और सुदर्शन-चक्र लौट गया।
तात्पर्य यह है कि क्रोध ऐसा तमोगुण है जिसका धारणकर्ता दूसरों के सम्मान का अधिकारी नहीं रह जाता, यहां
तक कि भगवान भी उसे अपनी शरण नहीं देते।
गीता भी कहती हैं
क्रोध से मोह उत्पन्न होता है और मोह से स्मरणशक्ति का विभ्रम हो जाता है। जब स्मरणशक्ति भ्रमित हो जाती
है, तो बुद्धि का नाश होने पर मनुष्य अपनी स्थिति से गिर जाता है।