Jeevan Ke Adbhut Rahasya | Life’s Amazing Secrets By Gaur Gopal Das Book Summary In Hindi
जीवन के अद्भुत रहस्य | Life’s Amazing Secrets By Gaur Gopal Das Book Summary In Hindi |
पहिया 1: व्यक्तिगत जीवन (WHEEL 1: PERSONAL LIFE)
1.कृतज्ञता के साथ आगे बढ़ना (Growing through Gratitude)
समस्याओं से निपटने के लिए हमें सकारात्मक सोच रखनी चाहिए। सोचें: क्या मैं जिस स्थिति में हूं, उसके बारे में कुछ सकारात्मक है? सकारात्मक होने का मतलब यह नहीं है कि हम नकारात्मक को नजरअंदाज करे। हमें सकारात्मक पर ध्यान केंद्रित करते हुए नकारात्मक परिस्थितियों से रचनात्मक रूप से निपटना चाहिए। कृतज्ञता जीवन की वह स्थिति है, जो हमें सकारात्मकता को देखना सिखाती है। यह इस अनुभूति से आती है कि दुनिया में अच्छाई है, उसमे से कुछ अच्छी चीजे हमारे साथ है और वे अच्छी चीजें बाहरी वास्तविकता से आ रही हैं। चेतना की वह अवस्था हमें सकारात्मकता से जोड़ देती है। यहाँ तक कि मुश्किलों और दुखों के समय में भी हम आंतरिक शक्ति अनुभव कर सकते हैं, ऐसा तब होता है, जब हम मित्रों और परिवारजनो के समर्थन के लिए कृतज्ञ होते हैं।
2.विराम लीजिए (Press Pause)
हमें अवश्य ही सीखना चाहिए कि अपना विराम-बटन कैसे दबाएँ, और जिसके प्रति कृतज्ञ हैं, उस पर चिंतन करें। यह कहना सही नहीं है कि हम इतने व्यस्त हैं कि कृतज्ञ भी नहीं हो सकते। अगर हम विराम नहीं लेते, तो अपने जीवन के कितने सुंदर पलों को खो देंगे। कृतज्ञता का अभ्यास करने के रास्ते हैं : उस अच्छाई को पहचानें, जो हमारे लिए की गई है, और “आपका शुक्रिया” कहें। कृतज्ञता केवल एक भावना नहीं है; यह जीवन जीने का तरीका है, जिसे सीखा जा सकता है और जिसका अभ्यास किया जा सकता है। हमें कृतज्ञता के अभ्यास के लिए समय की प्राथमकिता तय करनी चाहिए और इसके लिए कई रास्तों में से एक रास्ता है, कि नियमित रूप से कृतज्ञता-अभिलेख (gratitude log) लिखा जाए।
3.चिंता क्यों? (Why Worry)
जीवन में कुछ चीज़ें हमारे नियंत्रण से बाहर हैं। जब हम उस स्थिति में होते हैं, तो हम पूरी तरह से हारा हुआ महसूस करते हैं, क्योंकि हम अपने सामर्थ्य के अनुसार सभी प्रयत्न कर चुके होते हैं। लेकिन वह व्यर्थ है! व्हाट्सएप के संस्थापक (founder) को ट्विटर और फेसबुक में आवेदन करने से नौकरी नहीं मिली, भविष्य में ऐसा होना उसके पक्ष (favour) में था। अतः किसी एक समय में हमें जो बुरा लगता है, वह हमारे लिए सर्वश्रेष्ठ भी सिद्ध हो सकता है। जीवन में बहुत सारी परिस्थितियाँ बनती हैं, जो हमारे नियंत्रण से बाहर होती हैं। सोचिए : क्या यह मेरे नियंत्रण में है? यदि हाँ, तो आप इस विषय में कुछ कर सकते हैं। यदि नहीं, तो आप इस विषय में कुछ नहीं कर सकते। अतः दोनों ही स्थितियों में चिंता क्यों?
4.आध्यात्मिक साधना (Spiritual Practice)
हम आध्यात्मिक अनुभव करने वाले मानवीय जीव नहीं हैं, बल्कि मानवीय अनुभव रखने वाले आध्यात्मिक जीव हैं। हम यह शरीर नहीं हैं; हम शरीर से परे हैं। हमें संबंधों का क्रम समझने की आवश्यकता है। मूलभूत रूप से हमें अपने से बड़ी किसी शक्ति, जैसे ईश्वर, से जुड़ना चाहिए। ऐसा करना हमें दुनिया में खुशी और आनंद बाँटने की शक्ति दे सकता है। ईश्वर से जुड़ने के अनेक रास्ते हैं। हम अपना रास्ता चुन सकते हैं, जो आवश्यक है, क्योंकि हमें उस रास्ते पर दूर तक जाना होगा। एक बहुत प्रभावी तरीका जिसे Author ने अपनाया है, वह है मंत्र उच्चारण।
पहिया 2: संबंध (WHEEL 2: RELATIONSHIPS)
1.संवेदनशीलता के साथ अभिव्यक्ति (Speaking Sensitively)
हमें अपने शब्दों और क्रियाओं में संवेदनशील रहना चाहिए। संवेदनशील होने का अर्थ यह सोचना है कि हम जब कुछ कहते हैं या करते हैं, तो दूसरे लोग उससे कैसा अनुभव करते हैं। संवेदनशील बनने का अभ्यास कैसे करें? हमें निष्प्राण वस्तुओं (inanimate objects) को भी महत्त्व और आदर देना चाहिए। अगर हम ऐसा नहीं करते, तो असंवेदनशीलता की मानसकिता हमारे सामान्य रवैया (general attitude) का हिस्सा बन सकती है। किसी की प्रकृति या सामान्य रवैया, वस्तुओं और लोगों के बीच भेद नहीं करती। वस्तुओं के साथ बुरा व्यवहार हमारे रवैये (attitude) को नकारात्मकता देता है, जो हमारे संबंधों में भी प्रवेश कर सकती है।
2.सदाचारी दृष्टिकोण (A Virtuous Vision)
लोगों में श्रेष्ठ को देखना कभी-कभी चुनौतीपूर्ण हो सकता है, विशेषकर जब हम निरंतर उनकी निकटता में हों। हम लोगों को इन पांच तरीकों से समझ सकते हैं:
- वे जो केवल बुरा देखें और उसे बढ़ा-चढ़ा लें।
- वे जो अच्छा और बुरा दोनों देखें, लेकिन अच्छे को नज़रअंदाज़ करें और बुरे पर केंद्रित हों।
- वे जो अच्छा और बुरा दोनों देखें, और दोनों के प्रति तटस्थ (neutral) रहें।
- वे जो अच्छा और बुरा दोनों देखें, लेकिन अच्छे पर केंद्रित होना चुनें, और बुरे को नज़रअंदाज़ करें।
- वे जो अच्छा देखें और उसे बढ़ा-चढ़ा लें।
आदर्श स्थिति चौथी अवस्था है, जिसमें संबंध अच्छे होंगे। चौथी स्थिति में पहुँचने के लिए निरंतर कड़ी मेहनत और अभ्यास चाहिए।
3.सतर्कतापूर्वक सुधार (Correcting Cautiously)
गुस्से में कही गई बातें हमारे संबंध नष्ट करती हैं। अत: हमें ऐसा करने से बचना चाहिए। अगर हमें सुधारात्मक प्रतिक्रिया (corrective feedback) देने की ज़रूरत पड़े, तो हमें ऐसा करने से पहले प्रशंसा और विश्वास का निवेश करना चाहिए। सुधारात्मक प्रतिक्रिया एक कला है। इसके चार सिद्धांत हैं। स्वयं से पूछिए:
- क्या सुधारात्मक प्रतिक्रिया देने के लिए मैं सही व्यक्ति हूँ?
- क्या मेरे पास सुधारात्मक प्रतिक्रिया देने के लिए सही प्रयोजन (motive) है?
- क्या मुझे सुधारात्मक प्रतिक्रिया देने का सही तरीका मालूम है?
- क्या इस कार्य के लिए यह सही समय है?
इन चार सिद्धांतों (principles) का सुचारु क्रियान्वयन (smooth implementation) समय लेता है, क्योंकि असंवेदनशील होकर सुधारात्मक प्रतिक्रिया देना बहुत सारे लोगों के लिए व्यसन (लत/addictive) जैसी बन गयी है।
4.क्षमाशीलता (Forgiveness)
क्षमाशीलता के जिन सिद्धांतों से हमें परिचित होना चाहिए, वे यह हैं:
5.संगति महत्वपूर्ण है (Association Matters)
हमारी संगति प्रबल होती है : यह हमें ऊँचा उठा सकती है या नीचे गिरा सकती है। सामान्य व्यवहार वो हैं, जो ज़रूरत-भर के कामो के लिए किए जाते और बिलकुल स्वाभावकि होते हैं। घनिष्ठ व्यवहार वस्तुओं, भोजन, विचारों, मूल्यों और धारणाओं के आदान- प्रदान के माध्यम से बनते हैं। हमारी जीवन-शैली पर दूसरे व्यक्ति की आदतों की अपेक्षा मूल्यों का प्रभाव अधिक पड़ता है।
पहिया 3: कामकाजी जीवन (WHEEL 3: WORK LIFE)
1.प्रतिस्पर्धा के चौराहे पर (Competition Crossroads)
अनुचित स्पर्धा (unhealthy competition) के दो कारण होते हैं, पहला किसी से द्वेष रखना और दूसरा अनियंत्रित महत्त्वाकांक्षा (uncontrolled ambition)। हम जीवन में उन लोगों से स्पर्धा (compete) करते हैं, जिनकी कुशलता और दृष्टकिोण हमारे जैसा ही होता है। जब दूसरे व्यक्ति की कुशलता का हमारे जीवन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ रहा होता, हम शायद ही कभी दबाव महसूस करते हों। स्पर्धा (Competition) जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में मिलती है। जैसे, खेलों में, व्यापार में, राजनीति में और कार्यस्थल पर। उचित स्पर्धा (Healthy competition) स्वयं से ही स्पर्धा (compete) करना है न कि अन्य लोगों से, स्वयं का बेहतर संस्करण (better version) बनने के लिए। कार्यस्थल (workplace) पर राजनीति हमेशा ही रहेगी, हमें इसको स्वच्छ तरीके से सँभालना सीखना होगा।
2.आत्म-खोज (Self-Discovery)
हमारे लिए क्या अर्थवान (meaningful) है और किस पर हम अपना समय लगाना चाहते हैं, जानने के लिए हमें खुद को समझना होगा। ऐसा अपने उद्देश्य (purpose) को समझकर किया जा सकता है, जिसके लिए समर्पण (dedication) और धैर्य (patience) चाहिए। अपने उद्देश्य को खोजना बहुत रोमांचक होता है, जैसे किसी उपहार को खोलना, आनंद का अनुभव देता है। जीवन में उद्देश्य तक पहुँचना एक यात्रा है, कोई घटना नहीं। जापानियों के पास एक मॉडल है, जिसे इकिगाई या ‘जीने का कारण’ कहते हैं। इसे चार विशिष्टताओं से बनाया गया है, जिसे हमें समझने की ज़रूरत है : हम क्या पसंद करते हैं? हम किस कार्य में कुशल हैं? दुनिया को किस चीज़ की ज़रूरत है? हमें किस कार्य के लिए धन मिल सकता है? अगर हम उम्र में बड़े हो चुके हैं और हमने अब तक जीवन में अपने उद्देश्य का आकलन नहीं किया है, तो हम इस सिद्धांत का अनुसरण कर सकते हैं : जो करना पड़ रहा है, उसे पसंद करो और वह भी करो, जो करना पसंद है।
3.कार्यस्थल के अध्यात्म की व्याख्या (Decoding Spirituality at Work)
4.सत्यनिष्ठा और चरित्र (Integrity and Character)
सदचरित्र (Good character) जीवन बदलने वाला होता है। यह हमारे कार्यों से संबंधित है, हमारे शब्दों से नहीं। चरित्र विकास के सिद्धांत हैं:
पहिया 4: सामाजकि योगदान (WHEEL 4: SOCIAL CONTRIBUTION)
1.निस्स्वार्थ त्याग (Selfless Sacrifice)
आइसक्रीम का दर्शन (philosophy) है : पिघलने से पहले इसका आनंद ले लो। मोमबत्ती का दर्शन (philosophy) है : पिघल जाने से पहले दूसरे लोगों को प्रकाश दे दो। खुश रहने के लिए, हमें अपना मनोभाव (attitude) आइसक्रीम से मोमबत्ती की ओर ले जाना चाहिए, स्वार्थी से स्वार्थहीन तक। यह सेवा के माध्यम से ही होगा। हमें करुणा थकान (compassion fatigue) से सावधान रहना चाहिए। इसका मतलब यह हुआ कि हमें दूसरों की सहायता का प्रयत्न करते समय अपने सभी पहियों को संतुलित रखना होगा। यह स्वार्थी होते हुए भी स्वार्थहीन रहने का सिद्धांत है।
2.सबसे पहले परिवार (Family First)
पहले हमें निस्स्वार्थ होकर अपने परिवार की सहायता करनी चाहिए। पारिवारकि संबंध बनाए रखने के लिए हमारे रोज़मर्रा के त्याग निस्स्वार्थता के ही कार्य हैं। हमारी निस्स्वार्थता का दायरा हमारे परिवार तक ही सीमित नहीं रहना चाहिए। हमें उनकी भी सहायता करनी चाहिए, जो हमारी तात्कालकि देखरेख और स्नेह के दायरे में नहीं हैं।
3.राष्ट्र कथा (The Nation Narrative)
4.सेवा में आनंद (Service Brings Joy)
सेवा के साथ अध्यात्म मिल जाने से वह अधिक संतुष्टिदायक हो जाती है। ईश्वर के साथ हमारे संबंध के आधार पर ही हम दूसरों की सेवा में अपने कौशल और क्षमता का उपयोग करते हैं। आध्यात्मिक साधना से ही सेवा आती है : कोई व्यक्ति ईश्वर के पवित्र प्रेम का अनुभव कर रहा है, तो इसका सच्चा लक्षण यह है कि वह संसार में मनुष्य की पीड़ा और संवेदना को अनुभव करता है। हमें सही कार्य, सही प्रयोजन (intention) के साथ और सही मनोभाव (mood) से करना चाहिए, यह अध्यात्म की श्रेणी में आएगा।