6 Powerful Rules of Successful Speaking | Jeet Ya Haar Raho Taiyar By Dr. Ujjwal Patni
सफल बोलचाल के 6 शक्तिशाली नियम | 6 Powerful Rules of Successful Speaking |
💕Hello Friends,आपका स्वागत है learningforlife.cc में। दुनिया में किसी भी व्यक्ति को शिखर पर पहुंचने के लिए बोलचाल के क्षेत्र में महारत हासिल करनी पड़ेगी। यह टीमवर्क का जमाना है, इसमें यह भी जरूरी है कि आप अपनी बात रखें और यह भी जरूरी है कि दूसरे स्वीकार करें। इस पोस्ट में जीत या हार रहो तैयार Book से सफल बोलचाल के 6 शक्तिशाली नियम बताये जा रहे है जो आपको दूसरों के सामने बिना विवाद खड़ा किए अपनी बात रखने का रास्ता बताएंगे।
1. बोलने के पहले सोचिए
हाल ही में ईसाइयों के सर्वोच्च धर्म गुरु पोप की एक टिप्पणी को इस्लाम विरोधी मान लिया गया। मामला इतना बढ़ा कि पोप को माफी मांगनी पड़ी। क्या पोप को पता नहीं है कि उनके चंद शब्दों से सारे विश्व में दंगे भड़क सकते हैं? हत्याएं हो सकती है? साम्प्रदायिक (communal) तनाव फैल सकता है? पोप सब जानते थे लेकिन शब्द मुँह से निकल गए। इसलिए पहले सोचो फिर बोलो। यदि जरा भी संदेह हो तो मौन रह जाओ लेकिन गलत बोलकर आफत मोल मत लो। वैसे भी इस संसार में कम बोलने वाले को गंभीर (Serious) और गरिमामय (Dignified) माना जाता है और ज्यादा बोलने वाले को बातूनी और मुँहफट। कम बोलने वाला मूर्ख भी विद्वान की तरह प्रतीत होता है। इसलिए जब भी आपके मन में कड़वाहट भरी हो, जब भी आप आवेश में हो, उस वक्त इस नियम का पालन जरूर करना, नहीं तो मेहनत से संजोऐ नाजुक रिश्ते टूटने में वक्त नहीं लगेगा।
2. गलती हो जाए तो तुरन्त स्वीकार कीजिए
यदि किसी काम के दौरान या बातचीत के दौरान कोई गलत बात आपके मुँह से निकल जाए, कोई गलत शब्द आप लापरवाही में कह दे, कोई गलत संबोधन आप अज्ञानता में दें दे तो तुरन्त स्वीकार कर लें। अक्सर इंसान जब कोई गलती करता है तो उसके बाद फिर वह तीन गलती और करता है –
- अपनी गलती छुपाता है।
- अपनी गलती पर बहस करता है।
- अपनी गलती मानता नहीं।
ऐसी परिस्थिती में वह प्रसंग या विवाद इलास्टिक की तरह खिंच जाता है जो काफी अपमान और नुकसान देता है। तुरन्त माफी मांग लेना या स्वीकार कर लेना कायरता नहीं है बल्कि बहुत बड़ी बुद्धिमत्ता की निशानी है। भूल स्वीकार करने का कार्य सिर्फ साहसी और चरित्रवान लोग ही कर सकते है।
3. आप क्या कहते है.. से ज्यादा महत्त्वपूर्ण है आप कैसे कहते है
कुछ लोगों के बोलने का तरीका इतना तीखा और अपमानजनक होता है कि वे सामान्य बात भी कहते हैं तो लगता है कि डांट रहे हैं। ऐसे लोगों को पता ही नहीं चलता कि इन्होंने कब किसे चोट पहुँचा दी। यदि आपका दोस्त आपसे कहे “मैं अच्छी तरह जानता हूँ, तुम इस ऊँचाई तक कैसे पहुँचे हो” तो आप आहत नहीं होंगे क्योंकि आपको लगेगा कि यह लाइन एक प्रशंसा करने वाली लाइन है। आपको लगेगा कि सामने वाला आपकी मुश्किलों और बाधाओं के बारे में बात कर रहा है जिनको हरा कर आपने सफलता प्राप्त की। परन्तु यदि यही लाइन कोई चुभने वाली शैली में कह दे तो आपको लगेगा कि जरूर वह व्यक्ति यह कहना चाह रहा है कि यहाँ तक तुम जुगाड़ से, रिश्वत से, प्रभाव से या अनैतिक तरीकों से पहुँचे हो। शब्द वही है परन्तु पहले व्यक्ति के लिए आपके मन में आदर भाव बढ़ जाएगा और दूसरे व्यक्ति के लिए दुश्मनी का भाव। इसलिए यह जरूरी है कि हम मंतव्य के अनुसार बोलने का तरीका भी सीखें। शब्दों में भावनाएं भी संप्रेषित (transmit) होनी चाहिये।
4. बहस का अंत गरिमा (dignity) से कीजिए
किसी भी प्रकार की चर्चा या विवाद का अंत करना बहुत ही संवेदनशील (Sensitive) मसला है। किसी भी बहस का अंत ऐसा नहीं होना चाहिए कि आप संबंधों को खो दें। इसलिये कुछ बातों का ध्यान रखिए :-
- आपकी बहस व्यक्ति के विचार से हो रही है, व्यक्ति से नहीं।
- हर बहस जीतना जरूरी नहीं है , कई बार हारकर भी जीत हासिल होती है।
- कोई बहस इतनी लंबी नहीं हो सकती कि आप चाह कर भी खत्म न कर सकें।
- Public place पर यदि बहुत आवश्यक ना हो तो दूसरों को बहस में शर्मिन्दा करने से बचें।
- बहस मुद्दागत है, व्यक्तिगत नहीं। बहस के अगले दिन उस व्यक्ति को “हैलो” कहना आपके शक्तिशाली होने की पहचान होगी।
- योजनाबद्ध (planned) मौन आपको जीत की संभावनाओं को कई गुना बढ़ा सकता है।
- किसी भी तरह की report presentation, Q&A session या बहस में अपनी बात सशक्त ढंग से सही तथ्यों के साथ रखिए। दूसरों पर ध्यान मत दीजिए।
- किसी भी बहस में शरीर की अक्षमता, रंग, जाति, क्षेत्र, धर्म या लिंग जैसे विषयों पर कट्टर आक्षेप न लगाएं अन्यथा बहस का एक बुरा अंत हो जाएगा, साथ ही आपकी छवि का भी।
Author का मानना है कि बहस की शुरूआत तो कोई भी मूर्ख कर सकता है परन्तु सकारात्मक अंत करने के लिए बेहद बुद्धिमत्ता की जरूरत होती है।
5. गड़े मुर्दे मत उखाड़िए
गरिमापूर्ण बहस करना सबके बस की बात नहीं है। लोग बहस में जीतने के लिए या अपनी बात सिद्ध करने के लिए पुराने मुद्दों को बीच में ले आते हैं। पुरानी बातें बीच में लाने से दूसरा पक्ष भी उत्तेजित हो जाता है और आपकी सही बातों को मानने से इन्कार कर देता है। विवाद बढ़ जाता है और पुराने घाव हरे हो जाते है। बार-बार गड़े मुर्दे उखाड़ने से यानि पुरानी बातों को बीच में लाने से आपका प्रभाव कम हो सकता है, बात मूल मुद्दे से भटक सकती है, और ऐसी बातें भी सामने आ सकती है जिनसे आपकी भी पोल खुल जाए। बीते विवाद को उठाने वाले व्यक्ति को अपरिपक्व (immature) माना जाता है और कोई भी गंभीरता से उनकी बातें नहीं सुनता। इसलिए हर बहस वर्तमान (Present) में होनी चाहिए और वर्तमान में खत्म होनी चाहिए, ना उसमें पिछला दिन आना चाहिए और ना ही वो अगले दिन तक जानी चाहिए।
6. दूसरों को असहमत होने का अधिकार है
पति चाहता है कि पत्नी हर बात से सहमत हो, पिता चाहता है कि पुत्र सहमत हो, यही उम्मीद (Expectation) विवाद को जन्म देती है। बॉस नहीं चाहता कि कर्मचारी असहमत हो। Senior यह उम्मीद करता है कि junior उससे सहमत हो। यदि जरा भी विरोध या असहमति दिखी तो वह व्यक्तिगत शत्रुता में बदल जाती है। इसलिए दूसरों की असहमति को सम्मान से स्वीकार कीजिए। उन्हें दबाइए मत, उन्हें छोटा या मूर्ख मत कहिए, उन्हें विचारों को व्यक्त करने दीजिए क्योंकि तभी वो आपकी टीम का हिस्सा बन पाएंगे क्योंकि यदि दो व्यक्ति एक साथ बैठे है और हर मुद्दे पर सहमत हो रहे हैं तो यह समझ लो कि सारा चिन्तन उनमें से एक व्यक्ति ही कर रहा है और दूसरा मूर्ख है।
☝ यह summary है “जीत या हार रहो तैयार | Jeet Ya Haar Raho Taiyar” By Dr. Ujjwal Patni book के एक chapter (सफल बोलचाल के 6 शक्तिशाली नियम) की। यदि detail में पढ़ना चाहते है इस बुक को यहां से खरीद सकते है 👇