Jeet Aapki | You Can Win – 20 Reasons Why We Don’t Achieve Excellence
जीत आपकी – सफलता न हासिल कर पाने के 20 कारण by Shiv Khera |
1. ख़तरे उठाने से बचना (Unwillingness to Take Risks)
एक बार किसी ने एक किसान से पूछा, “क्या तुमने इस मौसम में गेहूँ की फ़सल बोई है?” किसान ने जवाब दिया, “नहीं, मुझे बारिश न होने का अंदेशा था।” उस आदमी ने पूछा, “क्या तुमने मक्के की फ़सल बोई है?” किसान ने जवाब दिया, “नहीं, मुझे डर था कि कीड़े- मकोड़े खा लेंगे?” तब उस आदमी ने पूछा, “आख़िरकार तुमने बोया क्या है? ” किसान ने जवाब दिया, “कुछ नहीं, मैं कोई ख़तरा नहीं उठाना चाहता था।”
ख़तरा न उठाने वाला आदमी कोई ग़लती भी नहीं करता। लेकिन कोशिश न करना, कोशिश करके असफ़ल होने से भी बड़ी ग़लती है। कई लोगों में फ़ैसला न ले पाने की आदत बन जाती है, और यह छुआछूत बीमारी की तरह फैलती है। ऐसे लोग फ़ैसला न ले पाने के कारण कई अवसरों से हाथ धो बैठते हैं। ख़तरे उठाइए, पर जुआ मत खेलिए। ख़तरे उठाने वाले अपनी आँखें खुली करके आगे बढ़ते हैं, जबकि जुआ खेलने वाले अंधेरे में तीर चलाते हैं।
2. लगातार कोशिश की कमी (Lack of Persistence)
कोई आदमी इसलिए हीरो नहीं होता कि वह किसी और से ज़्यादा बहादुर है, बल्कि इसलिए होता है क्योंकि वह अपनी बहादुरी दूसरों की तुलना में दस मिनट ज़्यादा दिखाता है।
जब मुश्किलों पर क़ाबू पाना नाममुकिन लगता है, तो भागना सबसे आसान तरीका नज़र आता है। यह बात हर शादी, नौकरी और रिश्ते पर लागू होती है। जीतने वाले चोट भले ही खाएँ, लेकिन मैदान नहीं छोड़ते।
3. इच्छा फ़ौरन पूरी करने की चाह (Instant Gratification)
कई लोग रातोंरात लाखों-करोड़ों कमाना चाहते हैं। इस वजह से आजकल लौटरी का धंधा काफ़ी फल.फूल रहा है। हम इच्छाएँ झटपट पूरी करने के दौर में जी रहे हैं। आजकल हमको जगाने से लेकर सुलाने तक के लिए, यानी हर काम के लिए एक गोली मौजूद है। लोग एक गोली खाकर अपनी दिक्क़तों से छुटकारा पाना चाहते हैं। इसी तरह करोड़पति बनने के लिए लोग अपनी ईमानदारी का गला घोंट कर शार्टकट (short-cut) अपनाने से नहीं हिचकते।
4. प्राथमिकताएँ तय न करना (Lack of Priorities)
लोग प्राथमिकताओं की अदलाबदली करते हैं, जबकि ऐसा नहीं करना चाहिए। For example रिश्ते निभाने के लिए वे समय और स्नेह का मुआवज़ा पैसों और तोहफ़ों से चुकाना चाहते हैं। कुछ लोगों को अपने बीवी-बच्चों के साथ वक़्त गुज़ारने के बजाए अपनी गैर हाज़िरी का हरज़ाना चीज़ें ख़रीद कर चुकाना अधिक आसान लगता है। अपनी प्राथमिकताएँ तय न कर पाने के कारण हम वक़्त बरबाद करते हैं। हम यह नहीं समझ पाते कि वक़्त की बरबादी का मतलब जीवन की बरबादी है। प्राथमिकताएँ तय करने के लिए ख़ुद को अनुशासित करना पड़ता है। इससे हम वह कर पाएँगे जो ज़रूरी है, और जिसे हम करना चाहते हैं या जो हमें अच्छा लगता है।
5. शार्टकट की तलाश (Looking for Shortcuts)
हम कुछ दिए बिना कुछ पा भी नहीं सकते। दूसरे लफ़्ज़ो में कहें, तो हम जो लगाते हैं, बदले में वही पाते हैं, अगर हमने किसी योजना में ज़्यादा लागत नहीं लगाई है, तो हमको ज़्यादा फ़ायदा भी नहीं मिलेगा। बेशक, हर समाज में ऐसे मुफ़्तखोर भी होते हैं, जो कुछ किए बिना ही पाने की उम्मीद लगाए रहते हैं।
आज लोगों की समस्या यह है कि वे हर मसले का हल फ़ौरन चाहते हैं। वे हर चीज़ का समाधान एक मिनट में चाहते हैं। वे instant coffee की तरह instant ख़ुशियाँ भी चाहते हैं; लेकिन ऐसा कोई फ़ार्मूला (formula) नहीं है। इस तरह का नज़रिया बाद में निराशा को जन्म देता है।
6. स्वार्थ और लालच (Selfishness and Greed)
स्वार्थी नज़रिया रखने वाले लोगों, और संगठनों को पनपने का कोई हक नहीं है। वे दूसरों के हितों की परवाह किए बिना आगे बढ़ने की सोचते हैं। लालची आदमी हमेशा और अधिक पाने की चाह रखता है। ज़रूरतें पूरी की जा सकती हैं, लेकिन लालच नहीं। यह मन का कैंसर होती है। लालच रिश्तों को नष्ट कर देता है। लालच आत्मसम्मान की कमी की वजह से पैदा होता है।
7. दृढ़ विश्वास की कमी (Lack of Conviction)
दृढ़ विश्वास न रखने वाले लोग किसी बात पर अड़ नहीं पाते। कछु लोग ख़ुद को यह सोच कर बहेतर मानते हैं कि वे गल़त काम का समथर्न नहीं करते। पर उनमें विरोध करने का साहस नहीं होता। किसी काम के ग़लत होने के अहसास के बावजूद उसका विरोध न करना, दरअसल उस काम का समर्थन करना ही है। सफलता पाने का एक अहम राज़ यह है कि किसी बात के विरोध में रहने के बजाए, किसी बात के समर्थन में रहो। इस तरह हम समस्या के नहीं, बल्कि समाधान का हिस्सा बन जाते हैं। याद रखिए, किसी बात पर टिके रहने के लिए दृढ़ विश्वास की ज़रूरत होती है।
8. क़ुदरत के नियमों को न समझना (Lack of Understanding of Nature’s Laws)
फ्रै़ंकलिन के संकेत समझने से पहले भी बिजली कई बार चमकी थी। न्यूटन के संकेत समझने से पहले भी सेब उनके सिर पर कई बार गिरा था। क़ुदरत हमें हमेशा इशारे करती रहती है। यह हमें बार-बार इशारा करती है, और एकाएक हम उसका इशारा समझ जाते हैं।
सफलता उसूलों का नाम है आरै ये उसूल क़ुदरत के हैं। बदलाव क़ुदरत का उसूल है। हम या तो आगे बढ़ रहे हैं या पीछे हट रहे हैं। हम या तो काम बना रहे हैं या काम बिगाड़ रहे हैं। अगर हम किसी बीज को पेड़ बनने के लिए नहीं बोएँगे, तो वह सड़ जाएगा।
आप चाहें, या न चाहें, बदलाव तो होना ही है आरै होकर रहेगा। हर तरक्क़ी बदलाव का नतीजा होती है, पर ज़रूरी नहीं कि हर बदलाव की वजह से तरक्क़ी हो। हमें बदलावों का जायज़ा लेना चाहिए, आरै उन्हें तभी क़बुल करना चाहिए, जब वे सही लगें। किसी चीज़ को जाँचे बिना क़बूल कर लेना आदमी के ढीले स्वभाव को दर्शाता है, ऐसा करना आत्मविश्वास और आत्मसम्मान की कमी की निशानी है।
9. योजना बनाने और तैयारी करने की अनिच्छा (Unwillingness to Plan and Prepare)
जीतने की इच्छा सभी में होती है, मगर जीतने के लिए तैयारी करने की इच्छा बहुत कम लोगों में होती है।
ज़्यादातर लोग अपनी ज़िंदगी के बारे में योजना बनाने के बजाए पार्टी, और छुट्टियों के बारे में योजना बनाने में वक़्त बिताते हैं। अगर हमारी तैयारी ख़राब है, तो हमारा खेल भी खराब होगा, क्योंकि हम वैसा ही खेलते हैं, जैसी हमारी तैयारी होती है। सफलता और असफलता के बीच उतना ही अंतर होता है, जितना कि ‘सही’ और ‘लगभग सही’ के बीच होता है। जिस्म आरै दिमाग़ को पुरी तरह तैयार करने के लिए कुर्बानी आरै आत्मअनशुासन की ज़रूरत होती है। सामान्य बना रहना काफ़ी आसान है, लेकिन सबसे बेहतर बनना काफ़ी मुश्किल है। इसलिए कोई ताज्ज़ुब की बात नहीं है कि सामान्य लोग आसान रास्ता अपनाते हैं। किसी क्षेत्र में सफलता दिलाने वाली बढ़त तैयारी से ही मिलती है।
10. बहाने बनाना (Rationalisation)
जीतने वाले बारीकी से जाँच-परख तो करते हैं, पर बहाने नहीं बनाते। बहाने बनाना हारने वालों की आदत होती है। हारने वालों के पास अपनी नाक़ामयाबी की वजह बताने वाले बहानों की पूरी किताब होती है। उनके बहाने कुछ इस क़िस्म के होते हैं — मैं बदनसीब था। मेरे सितारे ख़राब हैं। मेरी उम्र काफ़ी कम है। मेरी उम्र काफ़ी ज़्यादा है। मैं लाचार हूँ। मुझमें चतुराई नहीं है। मैं शिक्षित नहीं हूँ। मैं सुंदर नहीं हूँ। मेरे अधिक संपर्क नहीं हैं। मेरे पास ज़्यादा पैसा नहीं है। मेरे पास ज़्यादा वक़्त नहीं है। मेरी माली हालत ख़राब है। काश, मुझे मौका मिला होता! काश, मुझ पर परिवार की ज़िम्मेदारी नहीं होती! काश, मैंने सोच-समझकर शादी की होती!
ऐसे बहानों की लिस्ट बढ़ती ही जाती है। किसी आदमी का सफल होना इन दो बातों पर निर्भर होता है — वजह, और नतीजे। वजह पर कोई ध्यान नहीं देता पर नतीजे मायने रखते हैं।
11. पिछली ग़लतियों से सीख न लेना (Not Learning From Past Mistakes)
इतिहास से सबक न लेने वाले लोग नष्ट हो जाते हैं। अगर हमारा नज़रिया सही हो, तो हम अपनी ग़लतियों से सीखते हैं। असफलता सफ़र का अंत नहीं, महज़ भटकाव होती है। यह देर की वजह बन सकती है, हार की नहीं। सच बात तो यह है कि अपनी ग़लतियों से हमें तज़ुरबा हासिल होता है। कुछ लोग सीखते हुए जीते हैं, और कुछ लोग केवल जीते हैं। अक़्लमंद लोग अपनी ग़लतियों से सीखते हैं — अधिक अक्लमंद लोग दूसरों की ग़लतियों से सीखते हैं। हमारी ज़िंदगी इतनी लंबी नहीं होती कि हम केवल अपनी ग़लतियों से सीखते रहें।
12. अवसर को न पहचान पाना (Inability to Recognise Opportunities)
अवसर बाधाओं का रूप धर कर भी आ सकते हैं। इसलिए बहुत-सारे लोग उन्हें पहचान नहीं पाते। याद रखिए, बाधा जितनी बड़ी होगी, अवसर भी उतना ही बड़ा होगा।
13. डर (Fear)
डर वास्तविक हो सकता है, और काल्पनिक भी। डरा हुआ इंसान अटपटे काम करता है। डर की बुनियादी वजह नासमझी होती है। डर कर जीना भावनाओं की कैद में जीने के समान है।
असफलता से भी अधिक बुरा असफलता का डर होता है। आदमी के साथ घटित होने वाली सबसे बुरी चीज़ असफलता नहीं होती। कोशिश न करने वाले लोग प्रयत्न करने से पहले ही असफल हो जाते हैं। बच्चे जब चलना सीखते हैं, तो बार-बार गिरते हैं, लेकिन उनके लिए वह असफलता नहीं, बल्कि सीख होती है। अगर वे मायूस हो जाएँ, तो कभी चल नहीं पाएँगे। घुटनों के बल बैठ कर डरी हुई ज़िंदगी जीने से अपने पैरों पर खड़ा हो कर मरना ज़्यादा बेहतर होता है।
14. प्रतिभा का उपयोग न कर पाना (Inability to Use Talent)
अलबर्ट आइंस्टीन (Albert Einstein) का कहना था, “मुझे लगता है कि मैंने ज़िंदगी में अपनी केवल 25 प्रतिशत बौद्धिक क्षमता (intellectual capital) का उपयोग किया।” विलियम जेम्स (William James) के मुताबिक इंसान अपनी केवल 10-12 प्रतिशत आंतरिक क्षमता का उपयोग करता है।
ज़्यादातर लोगों की ज़िंदगी का सबसे दुखद पहलू यह होता है कि वे अपने मन में कुछ करने की इच्छा लिए हुए ही मर जाते हैं। जीवित होते हुए भी वे ज़िंदगी को जी नहीं सके। वे इस्तेमाल होने की वजह से नहीं, बल्कि जंग लगने की वजह से मरे। मैं ख़ुद में जंग लगवाने के बजाए इस्तेमाल होना ज़्यादा पसंद करूँगा। ज़िंदगी में सबसे दुखद शब्द ये होते हैं, “मुझे यह करना चाहिए था।”
15. अनुशासन की कमी (Lack of Discipline)
आपको ज़िंदगी में यह चुनाव करना है, कि आप अनुशासन की क़ीमत चुकाएँगे, या अफ़सोस की।
क्या हमने कभी विचार किया है कि कुछ लोग अपने लक्ष्य तक क्यों नहीं पहुँच पाते? उन्हें बार-बार हार और संकट का सामना क्यों करना पड़ता है? कुछ लोगों को लगातार सफलता क्यों मिलती जाती है, जबकि दूसरे लोगों को अंतहीन असफलताएँ झेलनी पड़ती हैं। खेलकूद, शिक्षा (अकादमिक क्षेत्र), और व्यापार, यानी किसी भी क्षेत्र में अनुशासन के बिना महत्त्वपूर्ण सफलता कोई भी कभी हासिल नहीं कर सका।
अनुशासनहीन लोग हर काम करने की कोशिश करते हैं, लेकिन उनमें किसी भी काम को करने का संकल्प नहीं होता। लगातार कोशिश की कमी अनुशासन की कमी का नतीजा होती है। अनुशासित रहने के लिए आत्मनियंत्रण और त्याग की जरूरत होती है, तथा भटकाव और लालच से बचना पड़ता है। इसका मतलब यह होता है कि हम लक्ष्य पर ध्यान लगाएँ।
अनियमित कड़ी मेहनत से कहीं बेहतर है नियमित रूप से की गई थोड़ी-सी भी कोशिश, जो अनुशासन से आती है, अनुशासन और पछतावा, दोनों ही दुखदायक हैं। ज़्यादातर लोगों को इन दोनों में से किसी एक को चुनना होता है। ज़रा सोचिए, इन दोनों में से कौन ज़्यादा तकलीफ़ देह है।
16. आत्मसम्मान की कमी (Poor Self-esteem)
अगर कोई इंसान ख़ुद की इज़्ज़त नहीं करता, आरै अपनी अहमियत महसूस नहीं करता, तो उसमें स्वाभाविक रूप से आत्मसम्मान की कमी होती है। ऐसा इंसान न तो अपनी इज़्ज़त करता है, और न ही दूसरों की। उसकी शख़्सियत की ड्राइविंग सीट (driving seat) पर अहंकार (ego) बैठ जाता है। वह फ़ैसले कोई क़ायदे का काम करने के लिए नहीं बल्कि अपने अहंकार को संतुष्ट करने के लिए लेता है। जिन लोगों में आत्मसम्मान की कमी होती है, वे लगातार अपनी पहचान की तलाश करते रहते हैं। वे ख़ुद को ढूँढ़ते रहते हैं। शख़्सियत कहीं पड़ी हुई नहीं मिलती, उसे बनाना पड़ता है। बहानेबाज़ी की आदत, निकम्मापन और आलसीपन आत्मसम्मान की कमी का ही नतीजा होते हैं। निकम्मापन उस जंग की तरह है, जो बढ़िया से बढ़िया लोहे को भी खा जाता है।
17. ज्ञान की कमी (Lack of Knowledge)
60 साल पहले मैं सारी बातें जानता था, लेकिन अब मैं कुछ नहीं जानता, अपनी अज्ञानता को निरंतर जानते रहने की प्रक्रिया ही शिक्षा है।
अपनी अज्ञानता के दायरों को जानना ही ज्ञानप्राप्ति की दिशा में पहला क़दम है। इंसान जितना ज़्यादा ज्ञान प्राप्त करता है, उसे अपनी अज्ञानता के क्षेत्रों का अनुभव भी उतना ही ज़्यादा होता है। अगर कोई इंसान यह समझता है कि उसे सब कुछ मालूम है, तो उसे सीखने की सबसे ज़्यादा ज़रूरत है। अज्ञानी लोग नहीं जानते कि वे अज्ञानी हैं। उन्हें अपने अज्ञानता का अहसास ही नहीं होता। दरअसल अज्ञान से भी बड़ी समस्या ज्ञानी होने का भ्रम है, इसकी वजह यह है कि अगर हम कोई चीज़ नहीं जानने के बावजूद उसे जानने का भ्रम पाल लेते हैं, तो ग़लत फ़ैसले लेने लगते हैं।
18. भाग्यवादी नज़रिया (Fatalistic Attitude)
भाग्यवादी नज़रिए वाले लोग उनके हालात की वजह से जन्म लेने वाली ज़िम्मेदारियों को क़बूल करने से कतराते हैं। वे सफलता, आरै असफलता दोनों को भाग्य की देन मानते हैं। वे सब कुछ भाग्य पर छोड़ देते हैं। वे अपनी कुंडली या सितारों द्वारा पहले से ही लिखी गई तक़दीर को मंजू़र कर लेते हैं। वे मान लेते हैं कि लाख कोशिश करने के बावजूद होगा वही, जो क़िस्मत में लिखा है। इसलिए वे कोई कोशिश ही नहीं करते, और आत्मसंतुष्टि उनकी ज़िंदगी के जीने का तरीका बन जाती है। वे ख़ुद कुछ कर गुज़रने के बजाए कुछ घटित होने का इंतजार करते रहते हैं। किसी भी असफल आदमी से पूछिए तो वह यही कहेगा कि क़ामयाबी तो क़िस्मत से मिलती है।
अगर हम असफल होना चाहते हैं, तो भाग्य में विश्वास कीजिए, और सफल होना चाहते हैं तो ‘वजह और नतीजे’ के सिद्धांत (principle) में विश्वास कीजिए; इस तरह हम अपनी क़िस्मत ख़ुद बनाएँगे। सैमुएल गोल्डविन (Samuel Goldwyn) ने सच ही कहा है, “मैं जितनी कड़ी मेहनत करता हूँ, भाग्य के उतने ही करीब पहुँच जाता हूँ।”
19. उद्देश्य की कमी (Lack of Purpose)
महान मस्तिष्कों में उद्देश्य होते हैं, अन्य लोगों के पास केवल इच्छाएँ होती हैं।
जब लोग उद्देश्यहीन और दिशाहीन होते हैं, तो उन्हें कोई अवसर नहीं दिखाई देता। जब किसी इंसान में कोई काम पूरा करने की इच्छा, लक्ष्य की ओर बढ़ने की सही दिशा का ज्ञान, लक्ष्य के प्रति समर्पण, और कड़ी मेहनत करने के लिए अनुशासन की भावना होती है, तो सफलता उसके क़दम चूमती है। अगर हमारे पास लक्ष्य और सही दिशा का ज्ञान नहीं है, तो हमारे पास और कोई भी खूबी हो, हम सफल नहीं होंगे। चरित्र की बुनियाद पर ही हर चीज़ टिकी होती है।
20. साहस की कमी (Lack of Courage)
सफल लोग चमत्कार घटित होने या कोई काम आसानी से हो जाने की आशा नहीं करते। वे रुकावटों पर काबू पाने की हिम्मत और ताकत हासिल करते हैं। वे इस पर ध्यान नहीं देते कि उन्होंने क्या गंवा दिया है, बल्कि इस पर ध्यान देते हैं कि उनके पास क्या बचा हुआ है। इच्छाएँ साकार नहीं होतीं, पर दृढ़ विश्वास पर टिके हुए भरोसे और उम्मीदें पूरी हो जाती हैं। प्रार्थनाएँ तभी स्वीकार की जाती हैं, जब साहस के साथ काम भी किया जाए। साहस और चरित्र, इन दोनों का मेल क़ामयाबी हासिल करने का एक अहम नुस्ख़ा है। आम और खास लोगों के बीच यही फ़र्क़ होता है।
हमारा मन जब साहस से भरा होता है, तो हम अपने डर को भूल जाते हैं, और रास्ते की रुकावटों पर क़ाबू पा लेते हैं। साहस का मतलब डर का न होना नहीं, बल्कि डर को जीतना है। साहस के बिना चरित्र (निष्ठा और न्यायप्रियता) बेअसर होता है, दूसरी ओर चरित्र के बिना साहस, ज़ुल्म का रूप ले लेता है।
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