संन्यासी की तरह सोचें | Think Like a Monk by Jay Shetty Book Summary in Hindi

Sanyasi ki Tarah Soche | Think Like a Monk by Jay Shetty Book Summary in Hindi
संन्यासी की तरह सोचें  | Think Like a Monk by Jay Shetty Book Summary in Hindi
संन्यासी की तरह सोचें  | Think Like a Monk by Jay Shetty Book Summary in Hindi
        💕Hello Friends,आपका स्वागत है www.learningforlife.cc में। “संन्यासी की तरह सोचें | Think Like a Monk” by Jay Shetty एक प्रेरक और सक्षम book है, जिसमे शेट्टी संन्यासी के रूप में अर्जित ज्ञान का लाभ लेकर हमें सिखाते हैं कि हम अपनी क्षमता और शक्ति की राह में आने वाले अवरोधों को कैसे हटा सकते हैं। यह book उजागर करती है कि हम नकारात्मक विचारों व आदतों से कैसे उबर सकते हैं और उस शांति तथा उद्देश्य तक कैसे पहुँच सकते हैं, जो हम सभी के भीतर मौजूद है। इस पोस्ट में “संन्यासी की तरह सोचें” book से 11 सबक़ दिए जा रहे हैं, जिनका इस्तेमाल करके हम सभी अपना तनाव कम कर सकते हैं, अपने संबंधों को बेहतर बना सकते हैं और अपनी प्रतिभा से संसार को फ़ायदा पहुँचा सकते हैं। शेट्टी इस book में यह साबित कर देते हैं कि हर व्यक्ति संन्यासी की तरह सोच सकता है और उसे सोचना ही चाहिए।

यह पुस्तक आपको सिखाएगी :

  • अपना उद्देश्य कैसे खोजें
  • नकारात्मकता से कैसे उबरें
  • अधिक विचार करने की आदत को कैसे रोकें
  • तुलना प्रेम को कैसे समाप्त कर देती है
  • अपने डर का इस्तेमाल कैसे करें
  • ख़ुशी की तलाश करने पर आपको ख़ुशी क्यों नहीं मिल सकती
  • हर मिलने वाले से कैसे सीखें
  • आपका अस्तित्व अपने विचारों से भिन्न क्यों हैं
  • सफलता के लिए दयालुता क्यों अनिवार्य है
  • और भी बहुत कुछ…

संन्यासी की तरह सोचने’ का मतलब है जीवन को देखने और जीने का एक अलग तरीक़ा। विद्रोह, अनासक्ति, नई खोज, उद्देश्य, एकाग्रता, अनुशासन और सेवा करने का तरीक़ा। संन्यासी सोच का लक्ष्य एक ऐसा जीवन है, जो अहंकार, ईर्ष्या, लोभ, चिंता, क्रोध, कटुता, अनावश्यक बोझ से मुक्त हो। शेट्टी को लगता है कि संन्यासी मानसिकता को लागू करना संभव भी है और आवश्यक भी। हमारे पास इसके सिवाय दूसरा कोई विकल्प नहीं है। हमें शांति, स्थिरता और सुख पाने की ज़रूरत है।

आगे इस पोस्ट में आप संन्यासी मानसिकता में ढलने की तीन अवस्थाओं के बारे में जानेंगे। सबसे पहले, तो हम जाने देंगे या छोड़ेंगे, ख़ुद को बाहरी प्रभावों, आंतरिक बाधाओं और डरों से मुक्त करेंगे, जिन्होंने हमें पीछे रोक रखा है। आप इसे एक तरह की सफ़ाई मान सकते हैं, जिससे विकास के लिए जगह ख़ाली होगी। दूसरी अवस्था में हम विकास करेंगे। मैं आपके जीवन को दोबारा आकार देने में आपकी मदद करूँगा, ताकि आप इरादे, उद्देश्य और आत्मविश्वास के साथ निर्णय ले सकें। अंत में हम अपने से बाहर के संसार को देखते हुए देने का अभ्यास करेंगे, कृतज्ञता के अपने अहसास का विस्तार करेंगे और लोगों को बताएँगे और हमारे संबंधों को गहरा करेंगे। हम दूसरों को अपने उपहार तथा प्रेम देंगे और सेवा के सच्चे आनंद और आश्चर्यजनक लाभ खोजेंगे।

भाग एक – मुक्त करें

1. पहचान

किसी दूसरे के जीवन की नक़ल को पूर्णता के साथ जीने से ज़्यादा अच्छा यह है कि आप अपनी ख़ुद की तक़दीर को अपूर्णता के साथ जिएँ।

—भगवद्गीता 3.35

माता-पिता, दोस्तों, शिक्षा और मीडिया की आवाज़ें युवा मस्तिष्क पर हमला कर देती हैं और उसमें मान्यताओं और मूल्यों के बीज बो देती हैं। अर्थपूर्ण जीवन बनाने का एकमात्र तरीक़ा इस शोर को बाहर रखना और अंदर देखना है। यह संन्यासी मस्तिष्क को बनाने की दिशा में पहला क़दम है।

संन्यासी की तरह सोचें  | Think Like a Monk by Jay Shetty Book Summary in Hindi
        हम इस यात्रा को उसी तरह शुरू करेंगे, जिस तरह संन्यासी करते हैं, यानी हम सबसे पहले भटकाने वाली चीज़ों या अवरोधों को दूर हटाएँगे। संन्यासी के रूप में शेट्टी ने जल्दी ही सीख लिया कि हमारा मन जिसमें तल्लीन होता है, वही हमारे मूल्यों को प्रभावित करता है। हम अपने मस्तिष्क या मन नहीं हैं, लेकिन मस्तिष्क वह वाहन है, जिससे हम निर्णय लेते हैं कि हमारे हृदय में क्या महत्त्वपूर्ण है। जो फ़िल्में हम देखते हैं, जो संगीत हम सुनते हैं, जो किताबें हम पढ़ते हैं, जो टीवी शो हम देखते हैं, जिन लोगों को हम ऑनलाइन और ऑफ़लाइन फ़ॉलो करते हैं। आपकी न्यूज़ फ़ीड में जो होता है, वह आपके मस्तिष्क को पोषण देता है, चाहे वह अच्छा हो या बुरा। हम फ़िल्मी सितारों की गपशप, सफलता की छवियों, हिंसक वीडियो गेम्स और नकारात्मक ख़बरों में जितने ज़्यादा डूबते हैं, हमारे मूल्य – ईर्ष्या, आलोचना, प्रतिस्पर्धा और असंतुष्टि से उतने ही ज़्यादा दूषित होते हैं।

बाहरी प्रभावों के शोर को दूर रखने के लिए संन्यासी जो पहला क़दम उठाते हैं, वह यह है कि वे भौतिक चीज़ों का त्याग कर देते हैं। शेट्टी ने अपने फ़ैशनेबल कपड़ों की जगह पर दो चोगे ख़रीद लिए (एक पहनने के लिए और दूसरा धोने के लिए)। शेट्टी ने अपनी काफ़ी शानदार हेयरकट की भी क़ुर्बानी दी… सिर के सारे बाल हटा दिए गए थे। और शेट्टी को अपने हुलिये की जाँच करने के लगभग सारे अवसरों से वंचित कर दिया गया था – आश्रम में एक भी दर्पण नहीं था, इस तरह उन संन्यासियों को अपने हुलिये की ज़्यादा परवाह करने से रोका गया। वह सादा भोजन खाते थे, जो शायद ही कभी बदलता था। वे फ़र्श पर चटाई बिछाकर सोते थे। और संगीत के नाम पर बस मंत्रेच्चारण और घंटियाँ सुनाई देती थीं, जो उनके ध्यान और धार्मिक क्रियाओं के बीच में गूँजते रहते थे। वे फ़िल्में या टीवी शो नहीं देखते थे। और तो और, सीमित ख़बरें और ईमेल भी उन्हें सामुदायिक क्षेत्र में साझे डेस्कटॉप कंप्यूटर पर ही मिलते थे।

जब ये व्यवधान या भटकाव चले गए, तो उनकी जगह किसने ली? रिक्त स्थान, स्थिरता और मौन ने। जब हम अपने आस-पास के संसार की राय, अपेक्षाओं और दायित्वों से दूर हो जाते हैं, तो हम ख़ुद को सुनने लगते हैं। उस ख़ामोशी में शेट्टी ने बाहरी शोर और अपनी ख़ुद की आवाज के बीच के फ़र्क़ को पहचानना सीखा। दूसरों की धूल साफ़ करने के बाद मैं अपने बुनियादी विश्वासों को देख सकता था।

आपको आपका सिर मुँडाने और चोगा पहनने की जरूरत नहीं है, लेकिन आधुनिक संसार में जागरूकता बढ़ाने के लिए हम ख़ुद को रिक्त स्थान, मौन और स्थिरता कैसे दे सकते हैं? हममें से ज़्यादातर लोग बैठकर अपने मूल्यों के बारे में विचार नहीं करते हैं। हमें अपने विचारों के साथ अकेले रहना पसंद नहीं होता है। हममें यह प्रवृत्ति होती है कि हम मौन या ख़ामोशी से बचें, अपने दिमाग़ भरने की कोशिश करें और बढ़ते रहें।

जब हम व्यस्त होते हैं, तो हम अपने विचारों का विश्लेषण नहीं कर सकते और अपने मस्तिष्क की पड़ताल नहीं कर सकते। घर में बस बैठे रहने से भी आप कुछ नहीं सीखते हैं। शेट्टी हमको तीन तरीक़े बता रहे है, जिनसे हम चिंतन-मनन के लिए सक्रियता से जगह बना सकते हैं।

  1. पहला सुझाव, हर दिन बैठकर मनन करें कि आपका दिन कैसा गुज़रा और आप कौन सी भावनाएँ महसूस कर रहे हैं।
  2. दूसरा सुझाव, महीने में एक बार आप किसी ऐसी जगह जाएँ, जहाँ आप पहले कभी नहीं गए हैं, ताकि आप एक अलग परिवेश में अपनी पड़ताल कर सकें। यह पार्क या लाइब्रेरी जैसी कोई भी जगह हो सकते है, जहाँ आप इससे पहले कभी नहीं गए थे।
  3. तीसरा सुझाव, किसी ऐसी चीज में शामिल हों, जो आपके लिए अर्थपूर्ण है – कोई हॉबी, परोपकारी संस्था, राजनीतिक मुहिम।

2. नकारात्मकता

दूसरों के दुख की बुनियाद पर अपने सुख का महल खड़ा करना असंभव है।

—दाइसाकू इकेदा

आप सुबह जागते हैं। आपके बिखरे हुए बाल काफ़ी बुरे दिखते हैं। आपका पार्टनर शिकायत करता है कि कॉफ़ी ख़त्म हो गई है। ऑफ़िस जाते समय किसी ड्राइवर की वजह से ट्रैफ़िक की हरी बत्ती लाल हो जाती है, क्योंकि वह मोबाइल पर मैसेज करने में जुटा हुआ है। रेडियो पर ख़बरें कल से भी ज़्यादा बुरी हैं। आपका सहकर्मी आपको फुसफुसाकर बताता है कि सुरेश ने एक बार फिर बीमारी का नाटक किया है… नकारात्मकता हर दिन हम पर हमला करती है। कोई हैरानी नहीं कि हम नकारात्मक देखते, सुनते और बाँटते हैं, क्योंकि यह लाज़िमी है। दिन में हमें जो छोटी-छोटी ख़ुशियाँ मिलीं, उनके बजाय हम अपने कष्ट और दुख ज़्यादा बताते हैं। हम अपनी तुलना अपने पड़ोसियों से करते हैं, अपने पार्टनर्स की शिकायत करते हैं, मित्रों की पीठ पीछे उनके बारे में ऐसी बातें कहते हैं, जो हम उनके सामने कभी नहीं कहते, सोशल मीडिया पर लोगों की आलोचना करते हैं, बहस करते हैं, धोखा देते हैं, यहाँ तक कि गुस्से में फट भी पड़ते हैं।

यह नकारात्मक चटर-पटर तब भी होती है, जब हमारा दिन अच्छा गुज़रता है। देखिए, कोई भी नकारात्मक होने का इरादा नहीं रखता है या इसकी योजना नहीं बनाता है। मेरे ख़याल से कोई भी उठते ही यह नहीं सोचता है, आज मैं दूसरे लोगों को कैसे नीचा दिखा सकता हूँ या उनके साथ बुरा बरताव कर सकता हूँ? या आज मैं दूसरों को बुरा महसूस कराकर ख़ुद को अच्छा महसूस कैसे करा सकता हूँ? बहरहाल, इस बात पर ग़ौर करें कि नकारात्मकता प्रायः भीतर से आती है। हमारी तीन मूल भावनात्मक आवश्यकताएँ हैं, जिन्हें शेट्टी – शांति, प्रेम और समझ कहते है। नकारात्मकता – बातचीत, भावनाओं और कार्यों में – अक्सर तब उत्पन्न होती है, जब इन तीनों आवश्यकताओं में से किसी पर जोखिम आता है : यह डर कि बुरी चीज़ें होने वाली हैं (शांति का नुक़सान), प्रेम न किए जाने का डर (प्रेम का नुक़सान), या असम्मानित होने का डर (समझ का नुक़सान)। इन डरों से सभी तरह के भाव उत्पन्न होते हैं – अभिभूत, असुरक्षित, आहत, प्रतिस्पर्धी, ज़रूरतमंद आदि महसूस करना। हमारे भीतर की ये नकारात्मक भावनाएँ शिकायतों, तुलनाओं, और आलोचनाओं और अन्य नकारात्मक व्यवहारों के रूप में बाहर निकलती हैं।

हमें अपने विचारों और शब्दों को घटाकर 100 प्रतिशत आशावाद और सकारात्मकता तक लाने की ज़रूरत नहीं है, लेकिन हमें ख़ुद को चुनौती देनी चाहिए कि हम नकारात्मकता की जड़ तक खुदाई करें, ख़ुद में और अपने आस-पास के लोगों में इसके स्रोत को समझें। हम पहचानकर और क्षमा करके इससे मुक्त हो सकते हैं। हम पहचानते हैं, रुकते हैं और बदलते हैं – अवलोकन, मनन और नकारात्मकता की जगह पर जीवन में नए व्यवहार विकसित करते हैं तथा हमेशा आत्म-अनुशासन और आनंद की कोशिश करते हैं। जब आप दूसरों के दुर्भाग्यों के बारे में ज़्यादा जिज्ञासा महसूस करना छोड़ देते हैं और इसके बजाय उनकी सफलता में आनंद लेने लगते हैं, तो यह समझ जाएँ कि आपका उपचार हो रहा है।

आप किसी दूसरे पर जितना कम समय ध्यान केंद्रित करते हैं, ख़ुद पर ध्यान केंद्रित करने के लिए आपके पास उतना ही ज़्यादा समय होता है। नकारात्मकता प्रायः डर से उत्पन्न होती है। आगे पोस्ट में हम डर की पड़ताल करेंगे और देखेंगे कि यह कैसे हमारे रास्ते में आता है और हम इसे जीवन का उपयोगी हिस्सा कैसे बना सकते हैं।

3. डर

डर मृत्यु को नहीं रोकता है। यह जीवन को रोकता है।

—बुद्ध

हम अपने डर के हाथों में अपने जीवन की बागडोर थमा देते हैं, लेकिन डर हमारी असली समस्या नहीं है। हमारी असली समस्या तो यह है कि हम ग़लत चीज़ों से डरते हैं। हमें दरअसल इस बात से डरना चाहिए कि हम अवसरों से चूक जाएँगे, जो डर हमें दे सकता है। यदि हम यह पहचानना सीख लें कि डर हमें हमारे बारे में और हमारे लिए महत्त्वपूर्ण चीज़ों के बारे में क्या सिखा सकता है, तो हम इसका इस्तेमाल अपने जीवन में ज़्यादा अर्थ, उद्देश्य और संतुष्टि हासिल करने के लिए एक औज़ार के रूप में कर सकते हैं। हम डर का इस्तेमाल अपने सर्वश्रेष्ठ स्वरूप को उजागर करने के लिए कर सकते हैं।

डर के साथ काम करना सीखने की प्रक्रिया केवल कुछ अभ्यास करने के बारे में नहीं है, जिनसे हर चीज़ सुलझ जाएगी। यह तो डर के बारे में आपके नज़रिये को बदलने के बारे में है। यह समझने के बारे में है कि डर आपको कोई मूल्यवान चीज़ दे सकता है। इसके बाद जब भी डर आता है, तो यह डर को पहचानने की ज़िम्मेदारी लेने के बारे में है और हर बार इससे दूर भटकने की अपनी आदत छोड़ने के बारे में है। डर के चार भटकाने वाले साइड इफ़ेक्ट होते हैं – दहशत में आना, जम जाना, दूर भागना और दफ़न करना। ये सभी दरअसल एक ही कार्य के अलग-अलग संस्करण हैं। हम यह भी कह सकते हैं कि ये एक ही अकार्य के विभिन्न रूप हैं – अपने डर को स्वीकार करने से इंकार करना। इसलिए अगर आप अपने डर को नकारात्मक से सकारात्मक में बदलना चाहते हैं, तो आपको सबसे पहले यही करना होगा – आपको अपने डर को स्वीकार करना होगा।

जब हम अपने डर को स्वीकार करते है और मान्यता देते है, तो इससे हमें अपनी मानसिक और शारीरिक प्रतिक्रियाओं को शांत करने में मदद मिलती है। अपने डर की ओर आगे बढ़ो। इससे परिचय बढ़ाओ। इस तरह हम डर के सामने पूरी तरह पहुँचते हैं। जब स्मोक अलार्म बजने की वजह से आपकी नींद खुल जाती है, तो आप उस पल की स्थिति को स्वीकार करते हैं और घर से बाहर निकल जाते हैं। बाद में ज़्यादा शांत अवस्था में आप यह सोच-विचार करते हैं कि आग कैसे शुरू हुई या यह कहाँ से आई। तब आप बीमा कंपनी को फ़ोन करेंगे। आप आगे की स्थिति की बागडोर सँभालेंगे। डर को पहचानने और उसके साथ वर्तमान पल में रहने का यही मतलब है।

4. इरादा

जब मस्तिष्क, हृदय और संकल्प के बीच एकरूपता होती है, तो कुछ भी असंभव नहीं है।

—ऋग्वेद

हमारे दिमाग़ में आदर्श जीवन की एक छवि होती है : हमारे संबंध, हम ऑफ़िस में अपना समय कैसे बिताते हैं, हम क्या हासिल करना चाहते हैं आदि। बाहरी प्रभावों के शोर के बिना भी कुछ लक्ष्य हमें मंत्रमुग्ध करते हैं और हम उन्हें हासिल करने के लिए अपने जीवन को ढालते हैं, क्योंकि हम सोचते हैं कि उन्हें हासिल करने पर हमें ख़ुशी मिल जाएगी, लेकिन क्या वे हमें सचमुच ख़ुशी दे सकती हैं और क्या ख़ुशी सही लक्ष्य है।

चाहे हम कितने ही अव्यवस्थित हों, हम सभी के पास योजनाएँ होती हैं। हमारे मन में एक विचार रहता है कि हम अगले दिन में क्या हासिल करेंगे; हमें शायद यह अहसास भी होता है कि उस साल क्या होगा, या शायद हम उम्मीद करते हैं कि हम इतना हासिल कर लेंगे। हम सभी के पास भविष्य के सपने होते हैं। मकान किराया चुकाने से लेकर संसार की यात्रा करने की इच्छा। इनमें से प्रत्येक धारणा के पीछे कोई न कोई प्रेरणा होती है। हिंदू दार्शनिक भक्तिविनोद ठाकुर चार बुनियादी अभिप्रेरणाओं का वर्णन करते हैं।

डर : ठाकुर इसका वर्णन करते हुए कहते हैं कि यह “बीमारी, ग़रीबी, नरक के डर या मौत के डर” से संचालित है। इच्छा : सफलता, दौलत और ख़ुशी के ज़रिये व्यक्तिगत संतुष्टि की चाह। कर्तव्य : कृतज्ञता, ज़िम्मेदारी और सही चीज़ करने की इच्छा से प्रेरित। प्रेम : दूसरों की परवाह और उनकी मदद करने की इच्छा से प्रेरित। ये चार अभिप्रेरणाएँ हमारे हर काम, हमारी हर क्रिया को संचालित करती हैं। मिसाल के तौर पर, हम विकल्प चुनते हैं, क्योंकि हम अपनी नौकरी खोने से डरते हैं, अपने मित्रों की प्रशंसा जीतना चाहते हैं, अपने माता-पिता की अपेक्षाएँ पूरी करना चाहते हैं या बेहतर जीवन जीने में दूसरों की मदद करना चाहते हैं।

डर, इच्छा, कर्तव्य और प्रेम इरादों की जड़ें हैं। संस्कृत में इरादे को संकल्प कहा जाता है और यही वह कारण है, जिसे ख़ुद के दिलोदिमाग़ में तय करने के बाद व्यक्ति लक्ष्य की दिशा में कोशिश करता है। इसे दूसरी तरह से कहें, तो आपके basic motivation से आप ख़ुद को आगे धकाने के इरादे विकसित करते हैं। इरादे का मतलब यह है कि आप क्या बनने की योजना बना रहे हैं, ताकि आप उद्देश्य के साथ काम कर सकें और महसूस कर सकें कि आप जो करते हैं, वह अर्थपूर्ण है। इसलिए अगर मैं डर की वजह से प्रेरित होता हूँ, तो मेरा इरादा अपने परिवार की रक्षा करना हो सकता है। अगर मैं इच्छा से प्रेरित हूँ, तो मेरा इरादा विश्वव्यापी मान्यता हासिल करना हो सकता है। अगर मैं कर्तव्य के बोध से प्रेरित हूँ, तो मेरा इरादा अपने मित्रों की मदद करना हो सकता है, चाहे मैं कितना ही व्यस्त रहूँ। अगर मैं प्रेम से प्रेरित हूँ, तो हो सकता है कि मेरा इरादा वहाँ सेवा करने का हो, जहाँ मेरी सबसे ज़्यादा ज़रूरत है।

भाग दो – विकास करें

5. उद्देश्य

जब आप अपने धर्म की रक्षा करते हैं, तो आपका धर्म आपकी रक्षा करता है।

—मनुस्मृति 8:15

हमारा समाज हमारी शक्तियों का लाभ लेने के बजाय हमारी कमज़ोरियों को मज़बूत बनाने पर ध्यान केंद्रित करता है। स्कूल में अगर आपको तीन विषयों में ए ग्रेड मिलते हैं और एक में डी ग्रेड मिलता है, तो आपके आस-पास के सभी वयस्क उस डी पर ध्यान केंद्रित करते हैं। स्कूल में हमारे ग्रेड, टेस्ट के स्कोर, प्रदर्शन समीक्षाएँ (performance reviews), यहाँ तक कि ख़ुद को सुधारने की कोशिशें भी हमारी कमियों को रेखांकित करती हैं और हमें उन्हें सुधारने के लिए प्रेरित करती हैं, लेकिन अगर हम उन कमियों को अपनी असफलता मानने के बजाय किसी दूसरे का धर्म मान लें, तो क्या होगा? बेनडिक्टीन नन सिस्टर जोआन चिटिस्टर ने लिखा है, “खुद की सीमाओं में विश्वास हमें खोलता है और दूसरों की प्रतिभाओं में विश्वास हमें सुरक्षित बनाता है। हमें यह अहसास होता है कि हमें हर चीज़ नहीं करनी है, हम हर चीज़ नहीं कर सकते, मैं जो नहीं कर सकती, वह किसी दूसरे की प्रतिभा और ज़िम्मेदारी है… मेरी सीमाएँ दूसरे लोगों की प्रतिभाओं के लिए जगह बनाती हैं।” अपनी कमज़ोरियों पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय हम अपनी शक्तियों पर केंद्रित होते हैं और उन्हें अपने जीवन के केंद्र में लाने के तरीक़े खोजते हैं।

यहाँ दो महत्त्वपूर्ण चेतावनियाँ हैं : सबसे पहले, अपने धर्म का अनुसरण करने का यह मतलब नहीं है कि आपको फ्री पास मिल जाता है। जब योग्यताओं की बात आती है, तो आपको अपनी शक्तियों पर केंद्रित होना चाहिए, लेकिन अगर आपकी कमज़ोरियाँ परानुभूति, करुणा, दया और उदारता जैसे भावनात्मक गुण हों, तो आपको उनके विकास में जुटे रहना चाहिए और यह काम कभी नहीं छोड़ना चाहिए। अगर आपमें करुणा नहीं हैं, तो कंप्यूटर उस्ताद होने में कोई तुक नहीं है। आपकी योग्यता के कारण आपको बेरहम बनने की स्वतंत्रता नहीं मिलती है। दूसरी चेतावनी, स्कूल में बुरे ग्रेड का मतलब यह नहीं है कि आप उस विषय को पूरी तरह से छोड़ दें। हमें कमज़ोरी और अनुभव की कमी में फ़र्क़ करने की सावधानी रखनी चाहिए। हममें से कुछ लोग अपने धर्म के बाहर इसलिए जीते हैं, क्योंकि हमने यह पता ही नहीं लगाया है कि यह क्या है। विकल्पों को ख़ारिज करने से पहले व्यापक प्रयोग करना महत्त्वपूर्ण है और इस तरह की ज़्यादातर प्रयोगशीलता का ज़्यादातर स्कूल और दूसरी जगह पर की जाती है, जब हम छोटे होते हैं।

अपने उद्देश्य को जानना और इसे पूरा करना ज़्यादा आसान और ज़्यादा फलदायक होता है, जब आप हर दिन अपने समय और ऊर्जा का बुद्धिमत्ता से इस्तेमाल करते हैं।

6. दिनचर्या

हर दिन, जागते समय सोचें, मैं सौभाग्यशाली हूँ कि मैं आज जीवित हूँ, मेरे पास मूल्यवान मानव जीवन है, मैं इसे बरबाद नहीं करूँगा।

—दलाई लामा

सुबह-सुबह सबसे पहले अपने फ़ोन को देखना सौ अजनबी वक्ताओं को अपने बेडरूम में घुसाने जैसा है, जबकि आपने नहाया नहीं है, ब्रश नहीं किया है और बाल नहीं काढ़े हैं। अलार्म क्लॉक और आपके फ़ोन के अंदर के संसार के बीच आप तुरंत तनाव, दबाव, चिंता से अभिभूत हो जाते हैं। क्या आप सचमुच यह उम्मीद करते हैं कि इस तरह दिन शुरू करने के बाद आपका दिन सुखद और उत्पादक रहेगा?

जल्दी जागने से आपका दिन ज़्यादा उत्पादक और उपयोगी बनता है। सफल bisiness man यह बात जानते हैं। ऐपल के सीईओ टिम कुक अपना दिन सुबह 3.45 पर शुरू करते हैं। रिचर्ड ब्रान्सन 5.45 पर उठ जाते हैं। मिषेल ओबामा 4.30 पर उठती हैं। यह ग़ौर करना महत्त्वपूर्ण है कि बहुत सारे प्रभावशाली लोग जल्दी उठते हैं, लेकिन शीर्ष एक्ज़ीक्यूटिव नींद पूरी करने की मुहिम भी छेड़ते हैं। एमेज़ॉन के सीईओ जेफ़ बेज़ोस हर रात आठ घंटे सोने को सबसे शीर्ष प्राथमिकता देते हैं और कहते हैं कि कम नींद से आपको उत्पादन करने का ज़्यादा समय तो मिलता है, लेकिन इससे गुणवात्ता पर बुरा असर पड़ता है। इसलिए अगर आप जल्दी उठना चाहते हैं, तो आपको ऐसे समय सो जाना चाहिए, जिससे आपकी नींद अच्छी तरह पूरी हो जाए।

दिनचर्याएँ तर्क के विपरीत होती हैं – बोरिंग और दोहराव भरी होने के बजाय एक ही जगह पर एक ही समय में एक ही काम करने से सृजनात्मकता के लिए जगह बनती है। स्थान की निरंतर ऊर्जा और समय की स्मृति वर्तमान पल में मौजूद रहने में हमारी मदद करती हैं। भटकने या कुंठित होने के बजाय वे हमें काम में गहराई से डूबने में सक्षम बनाती हैं। दिनचर्याएँ बनाएँ और एकाग्रता पाने और गहरे डूबने के लिए ख़ुद को उसी तरह प्रशिक्षित करें, जिस तरह संन्यासी करते हैं।

एक बार जब हम अपने बाहरी भटकावों को शांत कर देते हैं, तो हम सबसे सूक्ष्म और सबसे शक्तिशाली भटकावों को भी हटा सकते हैं – हमारे दिमाग़ के अंदर की आवाज़ें।

7. मन

जब पाँच इंद्रियाँ और मन स्थिर हो जाता है, जब तर्क करने वाली बुद्धि मौन में आराम करती है, तब सर्वोच्च मार्ग शुरू होता है।

—कथा उपनिषद

हम इंसानों के दिमाग़ में हर दिन लगभग सत्तर हज़ार अलग-अलग विचार आते हैं। जर्मन मनोवैज्ञानिक और न्यूरोसाइंटिस्ट अर्न्स्ट पॉपेल ने अपने शोध के ज़रिये दिखाया है कि हमारा मन एक बार में लगभग तीन सेकंड तक ही वर्तमान पल में रहता है। इसके अलावा हमारा मस्तिष्क आगे-पीछे सोचता रहता है, वर्तमान समय के बारे में ऐसे विचार भरता है, जिन्हें हमने या तो अतीत में अनुभव किया है या जिनके होने की हम उम्मीद कर रहे हैं। जैसा हाउ इमोशन्स आर मेड की लेखिका लीज़ा फेल्डमैन बैरेट अपने एक पॉडकास्ट में बताती हैं, ज़्यादातर समय “आपका मस्तिष्क उस पर प्रतिक्रिया नहीं करता है, जो हो रहा है; यह तो भविष्यवाणी करने में जुटा रहता है कि क्या होगा।” बुद्ध ग्रंथ संयुक्त निकाय के अनुसार हर विचार एक शाखा है और हमारा मन बंदर जैसा है, जो एक डाल से दूसरी डाल पर झूल रहा है, प्रायः निरुद्देश्य तरीक़े से। यह मज़ेदार लगता है, लेकिन जैसा हम सभी जानते हैं, यह ऐसा है नहीं। आम तौर पर ये विचार डर, चिंताएँ, नकारात्मकता और तनाव के होते हैं। ऑफ़िस में इस सप्ताह क्या होगा? मुझे डिनर में क्या खाना चाहिए? क्या मैंने इस साल छुट्टियों के लिए पर्याप्त पैसे बचा लिए हैं? मेरी प्रेमिका को डेट पर आने में पाँच मिनट देर क्यों हो गई? मैं यहाँ क्यों हूँ? ये सभी वास्तविक प्रश्न हैं, जो जवाब के हक़दार हैं, लेकिन अगर हम एक विचार से दूसरे विचार तक झूलते रहेंगे, तो उनमें से कोई भी नहीं सुलझेगा। यह अप्रशिक्षित मन का जंगल है।

अच्छी ख़बर यह है कि आप अपने मन से गहरा संबंध बनाने का जितना ज़्यादा अभ्यास करते हैं, इसमें उतनी ही कम मेहनत की ज़रूरत होती है। जिस मांसपेशी का आप नियमित व्यायाम करते हैं, उसी तरह आपकी यह योग्यता भी समय के साथ ज़्यादा शक्तिशाली और ज़्यादा विश्वसनीय बन जाती है। यदि हम हर दिन अपने हानिकारक या अनावश्यक विचारों की सफ़ाई करने की मेहनत करते हैं और उन्हें नरमी से दूसरी दिशा में ले जाते हैं, तो हमारा मन शुद्ध और शांत रहेगा; यह विकास के लिए तैयार रहेगा। हम नई चुनौतियों के कई गुना होने और अनियंत्रित होने से पहले ही उनसे निपट सकते हैं और उन्हें सुलझा सकते हैं।

जैसी भगवद्गीता में सलाह दी गई है, “सच्चे ज्ञान को पहचानने के लिए अपनी बुद्धि को विकसित करें। और बुद्धिमत्ता का अभ्यास करें, ताकि आप सत्य और असत्य, वास्तविकता और माया, अपने झूठे स्व और सच्चे स्व, दैवी गुण और आसुरी गुण, ज्ञान और अज्ञान में भेद जान लें। सच्चा ज्ञान प्रकाशित करता है और स्वतंत्र करता है, जबकि अज्ञान आपकी बुद्धि पर परदा डाल देता है और आपको बंधन में रखता है।”

अक्सर हमारा अहं हमें सच्चे ज्ञान से दूर रखता है। यही हमारे मन को आवेग और धारणा की ओर ले जाता है।

8. अहं (ego)

वे हमेशा के लिए स्वतंत्र हो जाते हैं, जो सारी स्वार्थपूर्ण इच्छाओं का त्याग कर देते हैं और ‘मैं’ और ‘मेरा’ वाले अहं के पिंजरे को तोड़ देते हैं।

—भगवद्गीता, 2:71

संस्कृत शब्द विनयम का अर्थ है ‘विनम्रता’। जब हम विनम्र होते हैं, तो हम सीखने के प्रति खुले होते हैं, क्योंकि हम यह बात समझते हैं कि बहुत कुछ है, जो हम नहीं जानते हैं। इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि सीखने की राह में सबसे बड़ी बाधा ख़ुद को सर्वज्ञाता मानना है। इस झूठे आत्मविश्वास की जड़ अहं में होती है।

अनियंत्रित अहं हमें नुक़सान पहुँचाता है। ख़ुद को सबसे महान और सबसे चतुर दिखाने की चाह में हम अपने सच्चे स्वभाव को छिपा लेते हैं। वह परसोना या छवि, जो हम संसार के सामने पेश करते हैं। यह एक जटिल तालमेल होता है, जिसमें ये चीज़ें शामिल होती हैं – जो हम हैं, जो हम बनना चाहते हैं, जैसे हम देखे जाना चाहते हैं और किसी पल हम क्या महसूस कर रहे हैं। जब हम घर पर अकेले होते हैं, तो हम अलग तरह के इंसान होते हैं, लेकिन संसार के सामने हम अपना एक अलग संस्करण पेश करते हैं। आदर्श दृष्टि से दोनों के बीच इकलौता फ़र्क़ यह होता है कि हमारा सार्वजनिक व्यक्तित्व विचारशील, परवाह करने वाला और उदार दिखने के लिए ज़्यादा कड़ी मेहनत करता है, लेकिन कई बार हमारा अहं बीच में आ जाता है। असुरक्षाओं की वजह से हम ख़ुद को और दूसरों को यह विश्वास दिलाना चाहते हैं कि हम ख़ास हैं, इसलिए हम अपना एक झूठा संस्करण गढ़ लेते हैं, ताकि हम ज़्यादा ज्ञानी, ज़्यादा योग्य, ज़्यादा आत्मविश्वासी दिखें। हम इस फूले हुए अहं को दूसरों के सामने पेश करते हैं और हम इसकी रक्षा के लिए वह सब कुछ करते हैं, जो हम कर सकते हैं : वह स्वरूप, जिसका हम दूसरों को विश्वास दिलाना चाहते हैं। चौथी सदी के संन्यासी इवाग्रियस पॉन्टिकस ने लिखा था कि अहंकार “आत्मा के सबसे विनाशकारी पतन का कारण होता है।”

अहं के दो चेहरे होते हैं। एक पल तो यह हमें बताता है कि हम हर चीज़ में बेहतरीन हैं और अगले पल यह हमें बताता है कि हम सबसे बुरे हैं। दोनों ही तरह से हम उसकी वास्तविकता के प्रति अंधे हो जाते हैं, जो हम सचमुच हैं। सच्ची विनम्रता इन दोनों के बीच की स्थिति को देखना है। मैं कुछ चीज़ों में बेहतरीन हूँ और बाक़ी में उतना अच्छा नहीं हूँ। मेरे इरादे अच्छे हैं, लेकिन मैं अपूर्ण हूँ। सब कुछ या कुछ नहीं के बजाय विनम्रता हमें अपनी कमज़ोरियों को समझने और उन्हें सुधारने की अनुमति देती है।

अहं के अंधकार में हम सोचते हैं कि हम ख़ास हैं, शक्तिशाली हैं और महत्त्वपूर्ण हैं, लेकिन जब हम विशाल ब्रह्मांड की पृष्ठभूमि में ख़ुद को देखते हैं, तो हमें नज़र आता है कि हम केवल एक छोटी भूमिका ही निभा रहे हैं। सच्ची विनम्रता पाने के लिए जुगनू की तरह हमें भी ख़ुद को तब देखना चाहिए, जब सूरज चमक रहा हो। तब हम स्थिति को ज़्यादा स्पष्टता से देख सकते हैं।

भाग तीन – समर्पित करना

9. कृतज्ञता

हर चीज़ की क़द्र करें, साधारण की भी। ख़ासतौर पर साधारण की।

—पेमा चोड्रॉन

कृतज्ञता का संबंध बेहतर मानसिक स्वास्थ्य, स्व-जागरूकता, बेहतर संबंधों और संतुष्टि के अहसास से जोड़ा गया है।

कृतज्ञता उस कटुता और दर्द से उबरने में भी हमारी मदद करता है, जो हम सभी अपने साथ रखते हैं। एक ही समय में ईर्ष्यालु और कृतज्ञ महसूस करने की कोशिश करें। कल्पना करना मुश्किल है। जब आप कृतज्ञता में मौजूद होते हैं, तो आप कहीं और नहीं हो सकते। UCLA के न्यूरोसाइंटिस्ट अलेक्स कॉर्ब के अनुसार हम एक ही समय में सकारात्मक और नकारात्मक दोनों तरह की भावनाओं पर ध्यान केंद्रित नहीं कर सकते। जब हम कृतज्ञ महसूस करते हैं, तो हमारा मस्तिष्क डोपामीन प्रवाहित करता है (पुरस्कार रसायन), जिससे हम दोबारा उसी तरह महसूस करना चाहते हैं और हम कृतज्ञता को एक आदत बनाना शुरू करते हैं। कॉर्ब के अनुसार, “एक बार जब आप उन चीज़ों को देखने लगते हैं, जिनके लिए आप कृतज्ञ हैं, तो आपका मस्तिष्क कृतज्ञ होने के लिए ज़्यादा चीज़ों की तलाश करने लगता है।” यह एक ‘अच्छा चक्र’ है।

यदि कृतज्ञता आपके लिए अच्छी है, तो ज़्यादा कृतज्ञता आपके लिए और भी अच्छी होनी चाहिए। इसलिए इस बारे में बात करते हैं कि हम अपने दैनिक जीवन में कृतज्ञता को कैसे बढ़ाएँ। संन्यासी हर समय हर चीज़ के लिए कृतज्ञ होने की कोशिश करते हैं। जैसा बौद्ध धर्मसिद्धांत के सुत्त पितक में सलाह दी गई है, “संन्यासियों। आपको ख़ुद को इस तरह प्रशिक्षित करना चाहिए : ‘हम कृतज्ञ होंगे, शुक्रगुज़ार होंगे और हम किसी के किए गए छोटे से छोटे अहसान को भी नज़रअंदाज़ नहीं करेंगे’।”

हम कृतज्ञता के बारे में यह सोचने की प्रवृत्ति रखते हैं कि हमें जो दिया गया है, यह उसकी क़द्र करनी है। संन्यासी इसी तरह महसूस करते हैं। और अगर आप किसी संन्यासी से पूछते हैं कि उसे क्या दिया गया है, तो जवाब है हर चीज़। जीवन की सच्ची जटिलता उपहारों और सबक़ों से भरी है, जिसकी सच्चाई हम हमेशा स्पष्टता से नहीं देख सकते कि वे क्या हैं। इसलिए जो है और जो भी संभव है, उस हर चीज़ के लिए कृतज्ञ होने का चुनाव क्यों न करें? दैनिक अभ्यास के ज़रिये कृतज्ञता को अंगीकार करें। यह काम अपने बाहरी कार्यों से भी करें और अंदर से भी – जिस तरह आप अपने जीवन और अपने आस-पास के संसार को देखते हैं। कृतज्ञता से दयालुता उत्पन्न होती है और यह भाव हमारे समुदाय में फैल जाता है। इससे हमारे आस-पास के लोगों के सर्वोच्च इरादे बाहर आ जाते हैं।

10. संबंध

हर व्यक्ति एक संसार है, जिसकी खोज की जा सकती है।

—तिक न्यात हन्ह

एक ऐसे समुदाय में जहाँ हर व्यक्ति एक-दूसरे की मदद करता था, शेट्टी को शुरुआत में यह उम्मीद थी कि अगर वे दूसरे संन्यासियों की परवाह करते है और उन्हें समर्थन देते है, तो संन्यासि भी उनके साथ ऐसा ही करेंगे, लेकिन वास्तविकता इससे ज़्यादा जटिल थी।

आश्रम में पहले साल के दौरान शेट्टी विचलित हो जाते थे और सलाह के लिए अपने एक गुरु के पास जाते थे। और कहते थे, “मैं विचलित हूँ। मुझे ऐसा महसूस होता है, जैसे मैं बहुत सारा प्रेम दे रहा हूँ, लेकिन मुझे यह महसूस नहीं होता कि सामने वाला मेरे प्रेम को लौटा रहा है। मैं दूसरों के प्रति प्रेमपूर्ण हूँ, परवाह करता हूँ और उनकी देखभाल करता हूँ, लेकिन वे मेरी ख़ातिर ऐसा नहीं करते। मुझे यह समझ नहीं आ रहा है।” संन्यासी ने पूछा, “तुम प्रेम क्यों दे रहे हो?” शेट्टी ने कहा, “क्योंकि यह मेरा स्वभाव है।”

संन्यासी ने कहा, “तो फिर इसके लौटकर आने की उम्मीद क्यों करते हो? लेकिन इसके अलावा, ग़ौर से सुनो। जब भी तुम किसी तरह की कोई ऊर्जा बाहर भेजते हो – प्रेम, नफ़रत, क्रोध, दयालुता – तो यह तुम्हें हमेशा वापस मिलेगी। एक तरह से या दूसरी तरह से। प्रेम एक चक्र की तरह होता है। जो भी प्रेम तुम बाहर भेजते हो, यह हमेशा तुम्हारी ओर लौटता है। समस्या तुम्हारी अपेक्षाओं में निहित है। तुम यह मानते हो कि जो प्रेम तुम्हें मिलता है, वह उसी व्यक्ति से मिले, जिसे तुमने प्रेम दिया था, लेकिन यह हमेशा उस व्यक्ति के माध्यम से नहीं लौटता है। इसी तरह ऐसे लोग हैं, जो तुमसे प्रेम करते हैं, लेकिन जिन्हें तुम बदले में उतना प्रेम नहीं लौटाते हो।”

हर दिन यह कहकर विश्वास को बढ़ाएँ और मज़बूत करें :

  1. वादे करना और निभाना (अनुबंधात्मक विश्वास)
  2. आप जिनकी परवाह करते हैं, उन्हें सच्ची प्रशंसा और सृजनात्मकता आलोचना दें; समर्थन देने के लिए सामान्य से ज़्यादा कोशिश करें (आपसी विश्वास)
  3. कोई बुरी स्थिति में है, उसने ग़लती की है या उसे ऐसी मदद चाहिए, जिसमें काफ़ी समय लगेगा, तब भी साथ दें (शुद्ध विश्वास)

11. सेवा

अज्ञानी अपने ख़ुद के लाभ के लिए काम करते हैं… बुद्धिमान संसार के कल्याण के लिए काम करते हैं…

—भगवद्गीता, 3:25

कायाकल्प की ये तीन अवस्थाएँ पूरे संन्यासी अनुभव के सार जैसी महसूस हुईं : सबसे पहले, हम बाहरी चीज़ों और अहं को छोड़ते हैं; दूसरे, हम अपने महत्त्व और मूल्य को पहचानते हैं और सीखते हैं कि हमें सेवा करने के लिए किसी चीज़ का स्वामी बनने की ज़रूरत नहीं है; और तीसरे, हम लगातार सेवा के ज़्यादा ऊँचे स्तर की तलाश करते हैं। शेट्टी गौरंग दास की इस बात से बहुत प्रेरित हुए, जब उन्होंने कहा था, “ऐसे पेड़ लगाएँ, जिनकी छाया के नीचे तुम बैठने की योजना न बना रहे हो।” इस वाक्य ने उन्हें मोहित कर दिया और उन्हें एक नई दिशा में चलने के लिए प्रेरित किया, जिसकी उन्होंने कभी कल्पना नहीं की थी।

भगवद्गीता हमें सेवा के बारे में सिखाती है कि : हम सेवा करने के लिए मजबूर हैं और केवल सेवा में ही हम ख़ुश हो सकते हैं। जिस तरह आग गर्म होती है, जिस तरह सूर्य प्रकाश और ऊष्मा है, उसी तरह सेवा भी मानव चेतना का सार है। उस संसार की वास्तविकता को जानें, जिसमें आप रहते हैं। जानें कि यह अस्थायी (temporary) है, माया है और आपके कष्ट तथा मोहभंग का स्रोत है। इंद्रियों की संतुष्टि – अच्छा महसूस करना – को जीवन का लक्ष्य मानने से दर्द और असंतोष उत्पन्न होता है। सेवा को जीवन का लक्ष्य मानने से संतुष्टि, सुख और संतोष मिलता है।

ज़्यादातर लोग केवल एक ही व्यक्ति के बारे में सोचते हैं : वे खुद। शायद परवाह का उनका दायरा थोड़ा बड़ा हो सकता है, जिसमें उनका तात्कालिक परिवार शामिल हो सकता है, यानी पाँच से दस लोग, जो एक-दूसरे की चिंता कर रहे हैं, लेकिन अगर आप अपनी परवाह के दायरे को फैलाते हैं, तो लोग इसे महसूस कर लेते हैं। अगर दूसरे अपनी परवाह के दायरे का विस्तार करते हुए आपको शामिल कर लेते हैं, तो मुझे यक़ीन है कि आपको यह महसूस हो जाएगा और क्या हो, अगर हम यह कल्पना करने की हिमाक़त करें कि हर व्यक्ति इसी तरह सोच रहा है? तब आपके पास 7.7 अरब लोग होंगे, जो आपके बारे में सोच रहे होंगे। और इसका विपरीत भी सच है। मुझे समझ नहीं आता कि हमें बड़ा क्यों नहीं सोचना चाहिए।

जीवन की कुंजी, जीवन का सार – सेवा है। यह बुरे दिन को सही कर देती है। यह हमारे बोझ के अहसास को हल्का कर देती है। सेवा दूसरे लोगों की मदद करती है और यह हमारी मदद करती है। हम बदले में किसी चीज़ की उम्मीद नहीं करते, लेकिन हमें बदले में सेवा करने की ख़ुशी मिलती है। यह प्रेम का आदान-प्रदान है।

  • जब आप सेवा में जी रहे हों, तो आपके पास शिकायत करने और आलोचना करने का समय नहीं होता।
  • जब आप सेवा में जी रहे हों, तो आपके डर दूर चले जाते हैं।
  • जब आप सेवा में जी रहे हों, तो आप कृतज्ञ महसूस करते हैं। आपकी भौतिक आसक्तियाँ कम हो जाती हैं।
  • सेवा अर्थपूर्ण जीवन का सीधा मार्ग है।

👆 यह Summary है “संन्यासी की तरह सोचें  | Think Like a Monk” by Jay Shetty Book की, यदि Detail में पढ़ना चाहते है तो इस Book को यहां से खरीद सकते है 👇

Comments

No comments yet. Why don’t you start the discussion?

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *