काम में जुटने की आदत डालें | Badi Soch Ka Bada Jadoo by David J. Schwartz in Hindi

काम में जुटने की आदत डालें | Badi Soch Ka Bada Jadoo by David J. Schwartz in Hindi

काम में जुटने की आदत डालें | Badi Soch Ka Bada Jadoo by David J. Schwartz in Hindi
 काम में जुटने की आदत डालें | Badi Soch Ka Bada Jadoo by David J. Schwartz in Hindi
        💕Hello Friends,आपका स्वागत है www.learningforlife.cc में। हर बड़े काम में – चाहे वह बिज़नेस हो,  सेल्समैनशिप हो, विज्ञान, सेना या सरकार हो – आपको एक ऐसे व्यक्ति की ज़रूरत पड़ती है जो न सिर्फ़ सोचता हो, बल्कि काम भी करता हो। Interviewer अक्सर इस तरह के सवाल पूछते हैं, “क्या वह यह काम कर पाएगा?” “क्या वह पूरा काम कर सकता है?” “क्या वह ख़ुद ही काम में जुटा रहेगा या उसे बार–बार याद दिलाना पड़ेगा?” “क्या वह काम पूरा करेगा या सिर्फ़ बातें ही करता रहेगा?” इन सारे सवालों का लक्ष्य एक ही है : यह पता लगाना कि क्या वह व्यक्ति कर्मठ है, क्या वह व्यक्ति काम का है। कहने का मतल है कि सफलता सिर्फ बातो से नहीं काम करने से मिलती है। तो इस पोस्ट में Badi Soch Ka Bada Jadoo by David J. Schwartz Book के 10th chapter से हम जानगे कि काम में जुटने की आदत कैसे डाले जिससे हमें सफलता मिल सके।

सफल और असफल लोगो में अंतर

        जब आप सफल और असफल दोनों तरह के लोगों का अध्ययन करते हैं, तो आप पाएँगे कि आप उन्हें दो श्रेणियों में बाँट सकते हैं। सफल लोग “कर्मठ” होते हैं। औसत व्यक्ति साधारण होता है, जबकि असफल लोग “निठल्ले” होते हैं।

हम दोनों समूहों के अध्ययन से सफलता का सिद्धांत खोज सकते हैं। मिस्टर कर्मठ काम करने वाले होते हैं। वे काम शुरू करते हैं, उसे पूरा करते हैं और उनके दिमाग़ में विचार और योजनाएँ होती हैं। मिस्टर निठल्ले एक “अकर्मण्य” व्यक्ति होते हैं। वे काम को टालते रहते हैं जब तक कि वे यह साबित न कर दें कि वह काम उन्हें क्यों नहीं करना चाहिए, या वह काम वे क्यों नहीं कर सकते, या जब तक काम का वक़्त ही न निकल जाए।

        मिस्टर कर्मठ और मिस्टर निठल्ले के बीच का अंतर अनगिनत चीज़ों में दिखता है। मिस्टर कर्मठ छुट्टियाँ मनाने की योजना बनाते हैं। वे छुट्टियाँ मनाकर आ जाते हैं। मिस्टर निठल्ले छुट्टियाँ मनाने की सोचते हैं। परंतु वे उसे “अगले” साल तक के लिए टाल देते हैं। मिस्टर क. निर्णय लेते हैं कि उन्हें नियमित रूप से चर्चा जाना चाहिए। और वह ऐसा करते हैं। मिस्टर नि. सोचते हैं कि चर्च जाना एक अच्छा विचार है, परंतु वे ऐसा करने से किसी न किसी कारण से बचते रहते हैं। मिस्टर क. महसूस करते हैं कि उन्हें किसी की उपलब्धि पर उसे बधाई देनी चाहिए। वे चिट्ठी लिख देते हैं। मिस्टर नि. को चिट्ठी लिखने से बचने का कोई बहाना मिल जाता है और वे चिट्ठी कभी नहीं लिख पाते।
        यह अंतर बड़ी चीज़ों में भी साफ़ दिखाई देता है। मिस्टर क. अपना खुद का बिज़नेस खड़ा करना चाहते हैं। वे ऐसा कर लेते हैं। मिस्टर नि. भी ख़ुद का बिज़नेस खड़ा करना चाहते हैं, परंतु उन्हें समय रहते ही कोई ऐसा “बेहतरीन” बहाना मिल जाता है जिसके कारण वे कभी ऐसा नहीं कर पाते। मिस्टर क., 40 साल की उम्र में, किसी नए काम में हाथ डालने का फैसला करते हैं। वे ऐसा सफलतापूर्वक कर लेते हैं। यही विचार मिस्टर नि. के मन में आता है, परंतु वे इस बात पर सोचते ही रहते हैं और कभी कुछ कर नहीं पाते।

हर व्यक्ति कर्मठ बनना चाहता है। इसलिए आइए काम शुरू करने और फिर उसे पूरा करने की आदत डालें।

        बहुत से निठल्ले लोग इस तरह के इसलिए बने क्योंकि वे इस बात का इंतज़ार करते हैं कि परिस्थितियाँ पूरी तरह आदर्श होनी चाहिए और जब तक ऐसा नहीं होता वे वहीं रुके रहते हैं। आदर्श स्थिति या पूर्णता बहुत अच्छी बात है। परंतु यह भी सच है कि कोई भी इंसानी चीज़ पूरी तरह आदर्श या पूर्ण नहीं होती है, न ही हो सकती है। इसलिए अगर आप आदर्श स्थिति का इंतज़ार करेंगे, तो शायद आपको हमेशा इंतज़ार करना पड़ेगा।
आप इस समस्या को कैसे दूर कर सकते हैं? यहाँ दो तरीक़े सुझाए जा रहे हैं जो आपकी इस आदत को दूर कर देंगे :
1. भविष्य में आने वाली कठिनाइयों का अनुमान लगाएँ।
हर नए काम में जोखिम, समस्या और अनिश्चितताएँ होती हैं। मान लें कि आप कार से शिकागो से लॉस एंजेल्स जाना चाहते हैं, और आप तब तक चलना शुरू नहीं करेंगे, जब तक कि आपको इस बात की पूरी गारंटी न मिल जाए कि रास्ते में कोई बाधा नहीं आएगी, आपकी गाड़ी ख़राब नहीं होगी, मौसम ख़राब नहीं होगा, कोई शराबी ड्राइवर आपको तंग नहीं करेगा, और किसी तरह का कोई ख़तरा नहीं होगा, तो क्या होगा ? आप कब चलना शुरू करेंगे ? कभी नहीं! इसी यात्रा की तैयारी आप इस तरह से भी कर सकते हैं कि आप यात्रा का नक़्शा साथ रख लें, अपनी कार को चेक करा लें, और इस तरह पूरी सावधानी बरतें। परंतु आप सारे ख़तरों को न तो भाँप सकते हैं, न ही उन्हें ख़त्म कर सकते हैं।
2. जब समस्याएँ और बाधाएँ आएँ, तब उनसे निबटें।
सफल व्यक्ति की योग्यता इस बात से नहीं जाँची जाती कि वह काम शुरू करने के पहले ही सारी बाधाओं को हटा देता है, बल्कि इस बात से जाँची जाती है कि जब भी उसकी राह में बाधाएँ आती हैं, वह उनसे निबटने के तरीक़े खोज लेता है। बिज़नेस, शादी, या किसी भी अन्य चीज़ में आप पुलों को तभी पार कर सकते हैं, जबकि आप पुल पर हों।

अच्छे विचारों पर अमल करने के 2 तरीके:

        हर दिन हमारे दिमाग में हजारो अच्छे विचार आते है और हर दिन हज़ारों लोग अच्छे विचारों को दफ़नाते रहते हैं क्योंकि उनमें उन पर अमल करने की हिम्मत नहीं होती। इस तरह विचारो पर अमल करे:-1.अपने विचारों पर अमल करके उन्हें मूल्यवान बनाएँ। चाहे विचार कितना ही अच्छा हो, यदि आप उस पर अमल नहीं करेंगे तो आपको ज़रा भी लाभ नहीं होगा।

2.अपने विचारों पर अमल करें और मन की शांति हासिल करें। किसी ने एक बार कहा था कि सबसे दु:खद शब्द हैं काश मैंने ऐसा किया होता!

अपने मानसिक इंजन को चालू करें

एक व्यक्ति ने कहा था कि ज़िंदगी की बड़ी समस्या गर्म बिस्तर से निकलकर ठंडे कमरे में आना थी। और उसकी बात में दम था। आप जितनी देर तक बिस्तर पर पड़े रहेंगे और सोचते रहेंगे कि बाहर निकलना कितना कष्टदायक है, ऐसा करना आपके लिए उतना ही मुश्किल होता जाएगा। इस तरह की सीधी-सादी सी बात में भी, जिसमें आपको अपनी चादर हटाकर अपने पैरों को फ़र्श पर रखना है, आपको डर लगता है। संदेश स्पष्ट है। जो लोग दुनिया में कुछ कर गुज़रते हैं वे इस बात का इंतज़ार नहीं करते कि कब उनका मूड सही होगा; बल्कि वे मूड को सही करने का सामर्थ्य रखते हैं। छोटे परंतु कष्टदायक कामों के बुरे पहलुओं के बारे में सोचने के बजाय आप बिना सोचे उस काम को करना शुरू कर दें।

सफलता का जादुई फ़ॉर्मूला

कल, अगले सप्ताह, बाद में, और किसी दिन, फिर किसी समय- यह सभी असफलता के शब्द हैं। बहुत सारे अच्छे सपने कभी सच नहीं हो पाते क्योंकि हम यही कहते रह जाते हैं, “मैं इसे किसी दिन शुरू करूँगा।” जबकि हमें यह कहना चाहिए, “मैं इसे अभी शुरू करता हूँ।” याद रखें, अभी काम करने का तरीक़ा सफलता का तरीक़ा है, जबकि फिर किसी दिन या फिर कभी काम करने की सोच असफलता का तरीक़ा है।

सफलता के लिए यह करे :
1. संघर्ष करने वाला बनें

जब आप ऐसी कोई बात सोचें जो आपके हिसाब से की जानी चाहिए तो आप तत्काल उस विचार को उठा लें और फिर उसके लिए संघर्ष शुरू कर दें।2. स्वयंसेवी बनें

हममें से हर एक के जीवन में ऐसा मौक़ा आया होगा जब हम किसी संस्था में स्वयंसेवा करना चाहते होंगे, परंतु हमने ऐसा नहीं किया। कारण क्या था? डर। यह डर नहीं कि हम काम नहीं कर पाएँगे, बल्कि यह डर कि लोग क्या कहेंगे। यह डर कि लोग हम पर हँसेंगे, हमें जुगाड़ कहेंगे, हमें महत्वाकांक्षी समझेगे – यही डर बहुत से लोगों को आगे बढ़ने से रोकता है।        यह स्वाभाविक है कि आप लोगों का समर्थन, उनकी तारीफ़ चाहें। परंतु ख़ुद से पूछें, “मैं किन लोगों की तारीफ़ चाहता हूँ : उन लोगों की जो मुझ पर ईष्र्या के कारण हँसते हैं या उन लोगों की जो कर्मठता से काम करके सफल होते हैं?” सही विकल्प क्या है, यह बताने की ज़रूरत नहीं है। कर्म की आदत को बढावा दें।

Short में इस chapter की summary:

  1. “कर्मठ” बनें। काम करने वाला बनें। “काम टालने वाला” न बनें।
  2. परिस्थितियों के आदर्श होने का इंतज़ार न करें। वे कभी आदर्श नहीं होंगी। भविष्य की बाधाओं और कठिनाइयों की उम्मीद करें और जब वे आएँ, तब आप उन्हें सुलझाने का तरीक़ा खोजें।
  3. याद रखें, केवल विचारों से सफलता नहीं मिलती। विचारों का मूल्य तभी है, जब आप उन पर अमल करें।
  4. डर भगाने और आत्मविश्वास हासिल करने के लिए कर्म करें। जिस काम से आप डरते हों, वह करें और आपका डर भाग जाएगा।
  5. सही मूड बनने का इंतज़ार न करें। कर्म शुरू कर दें, और आपका मूड अपने आप सही हो जाएगा।
  6. अभी काम शुरू करने के बारे में सोचें। कल, अगले सप्ताह, बाद में और इसी तरह के शब्द असफलता के शब्द  हैं। इस तरह के व्यक्ति बनें, “मैं अभी इस काम को शुरू कर देता हूँ।”
  7. कार्य में जुट जाएँ। कार्य की तैयारी में समय बर्बाद न करें। इसके बजाय सीधे काम में लग जाएँ।
  8. पहल करें। संघर्ष करें। गेंद छीनकर गोल की तरफ़ दौड़ लगाएँ। स्वयंसेवक बनें। यह बताएँ कि आपमें काम करने की योग्यता और महत्वाकांक्षा है।

अपने दिमाग़ को गियर में डाल दें और सफलता की राह पर चल पड़ें!

☝ यह Summary है “बड़ी सोच का बड़ा जादू | The Magic of Thinking Big” By David J. Schwartz book के 10th chapter की। यदि detail में पढ़ना चाहते है तो इस book को यहां से खरीद सकते है 👇

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