Logon ka Dil Jeetne ke 21 Tarike! | Safal Vakta Safal Vyakti by Ujjwal Patni

राधे राधे दोस्तों, www.learningforlife.cc में आपका स्वागत है। सब यह चाहते हैं कि वे परिवार, मित्र और समाज के बीच लोकप्रिय हों। हो सकता है आपको लंबे समय तक मंच पर जाने की, समूह को संबोधित करने की या ऑफिस में प्रेजेंटेशन देने की जरूरत न पड़े लेकिन बातचीत के बिना तो जीवन की कल्पना असंभव है। क्या दुनिया में ऐसा कोई व्यक्ति है जिसे सामान्य बातचीत न करनी पड़ती हो। दोस्तों में एक अच्छे इंसान के रूप में पहचान के लिए बातचीत की कला अहम है। कई लोग दिल के बुरे नहीं होते परन्तु कड़वी बात करने की वजह से लोगो के अप्रिय होते हैं और तरक्की के अवसर खो देते हैं। इस पोस्ट में बातचीत से लोकप्रिय होने के 21 सिद्धांत दिए जा रहे है। तो पढ़ते रहिए…..
1. क्या चुभने वाली बातें कहना जरूरी है?
यदि आप किसी को पसंद नहीं करते और वे आपको समूह में मिल जाएं तो उसके साथ भी सामान्य शिष्टाचार के नियमों का पालन करें। अनावश्यक रूप से चुभने वाले कटाक्ष न करें, उपेक्षा न करें। एक बार सोचिए क्या वाकई जरूरी है कटाक्ष या व्यंग्य?
2. क्या आप दूसरों में रुचि लेते हैं?
जो भी आपसे बातचीत कर रहा है उनके मन में यह इच्छा रहती है कि आप उनकी बातों पर ध्यान दें। यदि आप सिर्फ अपनी कहना चाहते हैं तो बात आगे नहीं बढ़ेगी। बातचीत के दौरान सामान्य प्रतिक्रिया जैसे ‘अच्छा, बहुत बढ़िया, कब से’ आदि बीच-बीच में कहने से सामने वाले को लगता है कि आप उसमें रुचि ले रहे हैं। ये बहुत छोटी-सी सलाह है पर एक बार अमल करके देखिए।
3. क्या आप हमेशा जीतने का प्रयास करते हैं?
अक्सर जो चतुर होते हैं वो हर वार्तालाप को जंग के रूप में लेते हैं और जीतना चाहते हैं। उन्हें सामने वाले को हरा कर, उनकी बात काट कर एक अजीब-सा सुकून मिलता है लेकिन ऐसे लोग समाज में बहुत ही अलोकप्रिय होते हैं। बातचीत को प्रतिष्ठा और जीत-हार का प्रश्न न बनाएं।
4. क्या आप दूसरों की सहज प्रशंसा कर पाते हैं?
यदि किसी की कोई बात आपको अच्छी लग रही हो तो बिल्कुल सहज और कम शब्दों में प्रशंसा करें। याद रखें, सच्ची प्रशंसा व्यक्ति कभी नहीं भूल पाता। प्रशंसा थोड़ी विशिष्टता लिए हुए करें जैसे- खाना बहुत अच्छा बना है परंतु यह कचौड़ी एकदम खास है, इतनी अच्छी कचौड़ी बहुत दिनों बाद खाने को मिली।
“खाना अच्छा” यह सामान्य प्रशंसा है जो सदैव औपचारिकता में भी की जाती है परंतु “कचौड़ी खास है” यह लाइन उन्हें हमेशा याद रहेगी। प्रशंसा में चाटुकारिता और मक्खनबाजी का इस्तेमाल न करें और बात को बढ़ाए-चढ़ाए बिना कहें।
5. क्या सचमुच निंदा जरूरी है?
बातचीत में चतुर वह होता है जो बिना मांगे राय नहीं देता। बिना आवश्यकता निंदा नहीं करता। यदि कोई घटना आपसे संबंध न रखती हो तो उसकी निंदा न करें। एक बात याद रखें, यह कतई आवश्यक नहीं होता कि हम निंदा करें। निंदा से हमेशा हम लोगों को खोते हैं, पाते नहीं। हो सकता है लोग जबरदस्ती आपके सामने मामला उठाकर निंदा के रूप में राय लेना चाहे परंतु ऐसी स्थिति में अस्पष्ट सा जवाब देकर बच जाएं। जितनी निन्दा और गॉसिप कम करेंगे, उतने ही मधुर और लंबे संबंध बनेंगे।
6. क्या आप मुस्करा कर सबसे मिलते हैं?
ईश्वर ने दुनिया की सबसे महंगी चीज इंसान को मुफ्त में दी है “मुस्कान” जिसमें हम बड़ी कंजूसी करते हैं। हमेशा एक मीठी मुस्कान बनाए रहिए, देखिए संबंध और मित्र किस तेजी से बढ़ते हैं। आप एक मुस्कराते हुए और प्रसन्नचित्त व्यक्ति के रूप में प्रसिद्ध होते जाएंगे। मुस्कराहट से आपका तनाव भी कम होगा।
जिस लिफ्ट में आप रोज चढ़ते हो, उस लिफ्टमैन को, आपके ऑफिस के चौकीदार को या सुबह भ्रमण पर जाते हुए जो चेहरे आपको रोज दिखते हों उन्हें आज से मुस्कराकर देखिए और उनके व्यवहार के परिवर्तन को महसूस कीजिए, आप चकित हो जाएंगे।
7. क्या आप दूसरों के नाम याद रखते हैं?
व्यक्ति को हमेशा अपने नाम से बहुत मोह रहता है। यदि आप किसी प्रसिद्ध व्यक्ति से सिर्फ एक बार मिले हैं और आपने अपना परिचय उन्हें दिया है। कुछ दिनों बाद वो अचानक आपको कहीं मिलते हैं और उन्हें आपका नाम याद रहता है तो आपका मन खुश हो जाता है… अरे इन्हें मेरा नाम याद है। नाम में हर व्यक्ति की खुशी छिपी है। नाम की महिमा अद्भुत है। दुनिया में जितने ज्यादा आप नाम याद रखेंगे उतने ही मित्र बढ़ेंगे।
8. क्या आप बार-बार वही बातें दोहराते हैं?
कई लोगों को एक ही बात बार-बार दोहराने की आदत होती है, जिससे सुनने वाला अपना धैर्य खो बैठता है। अपनी बात को संक्षिप्त में, एक बार में, पूर्ण प्रभाव के साथ कहना चाहिए। हर किसी के पास समय कम है, अतः उसी बात को बार-बार अलग-अलग रूपों में दोहरा कर अपना और सामने वाले का समय नष्ट न कीजिए। मौखिक परीक्षाओं में और समूह चर्चा में बातों का दोहराव करने पर नकारात्मक अंक दिए जाते हैं। यदि समय कम है तो पूर्ण तैयारी कीजिए ताकि बातें दोहरा कर आप समय नष्ट न करें।
9. क्या आपके मुंह से दुर्गंध आती है?
Author एक डेंटिस्ट है और वे जानते है कि मुंह से दुर्गंध आपको किस कदर नुकसान पहुंचा सकती है। आप एक महत्त्वपूर्ण बात किसी के करीब बैठकर कहते हैं लेकिन वो आपकी बात नहीं सुन पाता क्योंकि आपके मुंह से आ रही बदबू उसे विचलित कर देती है। यह एक विकराल सामाजिक समस्या है और इसका दुखद पहलू यह है कि यदि हम किसी से कह दें कि उसके मुंह से दुर्गंध आती है तो नाराज होने की पूरी संभावना है।
इसलिए हर 6 महीने में दंत चिकित्सक से दांतों की सफाई करवाइए और हमेशा एक सुगन्धित माउथवाश का इस्तेमाल कीजिए ताकि आप किसी के कितने भी करीब जाकर अपनी बात कहें, वो आपकी बात सुने।
10. क्या आप कट्टरवादी लहजे में बात करते हैं?
कट्टरवादी व्यक्ति समय और काल के अनुसार ही बात करते हैं, सबको अलग दृष्टि से देखते हैं। “सारे अधिकारी रिश्वतखोर हैं” कहने की बजाय यह कहना ठीक होगा कि “बहुत से अधिकारी रिश्वत लेते हैं” सभी और हमेशा जैसे शब्दों से बचें। इनकी जगह कुछ, बहुत सारे, कभी-कभी जैसे शब्द बेहतर होते हैं।
11. क्या आप बार-बार कान में फुसफुसाते हैं?
यदि आप एक समूह में हैं तो बार-बार किसी एक व्यक्ति के कान में न बोले, दूसरों को बुरा लग सकता है। पब्लिक मैनर्स में इसे सबसे बुरी आदतों में एक माना गया है। सामने बैठे व्यक्ति को लगता है कि आप उसकी आलोचना कर रहे हैं और बिना कारण ही विवाद का जन्म हो जाता है।
12. क्या आप “मैं” शब्द का ज्यादा इस्तेमाल करते हैं?
कई लोगों की आदत होती है कि वो सारी दुनिया को लेकर अपने में समेट लेते हैं। मैंने सोचा, मैंने कहा, मैं तो पहले से जानता था, मैं तो हमेशा कहता था आदि शब्दों से बचें। दूसरों को भी सांस लेने की जगह दें। यह “मैं” आपको अलोकप्रिय और विवादित बनाने का मुख्य कारण बन सकता है। अपने “मैं” को “हम” में बदलिए।
13. क्या आप हमेशा दूसरों को झूठा सिद्ध कर देते हैं?
अक्सर बातचीत में कुछ लोग अतिश्योक्ति कर जाते हैं, थोड़ा बड़ा बनने के चक्कर में झूठ बोल जाते हैं। आप कभी भी लोगों को झूठा सिद्ध न करें जब तक वो झूठ आपको नुकसान न पहुंचा रहे हों। आप स्वयं झूठ न बोलें और हल्के-फुल्के झूठ सहन करने की आदत डालें।
14. क्या आप हर बात पर “हां” कह देते हैं?
जो बात आपको पसंद न हो या जो काम आप नहीं करना चाहते हो उसके लिए स्पष्ट होकर विनम्रता से नहीं कहें। Yes man बनने का प्रयास न करें। हर बात में हां में हां मिलाने वालों की सामाजिक प्रतिष्ठा कम होती है और वो चाटुकार कहलाने लगते हैं। आप लोगों को हां तो कह देते हैं परन्तु बाद में अपने वादे पूरे नहीं कर पाते जिससे आपकी गैर जिम्मेदार व्यक्ति की छवि बनती है। जो काम नहीं कर सकते या आपका मन जिस कार्य हेतु सहमत नहीं है, उसे उसी वक्त अस्वीकार कर देने से आपकी छवि एक स्पष्टवादी और दृढ़ व्यक्ति की बनती है।
15. क्या आपकी जिम्मेदार व्यक्ति की छवि है?
अपनी कही हुई बातों की जिम्मेदारी लीजिए। यदि आपने किसी से कहा कि “मैं आपको दस बजे अमुक जगह में मिलूंगा” और आप नहीं जा रहे हैं तो सामने वालों को पूर्व में ही सूचना दीजिए या नहीं पहुंच पाने के लिए क्षमा मांगिए। दूसरों के समय की कीमत समझिए। इससे आपकी बोली, आपके जबान की कीमत बढ़ेगी और सामने वाले को असुविधा नहीं होगी। अपनी एक जिम्मेदार व्यक्ति की छवि बनाइए ताकि दूसरे पूर्ण विश्वास से आपको महत्त्वपूर्ण जिम्मेदारियों हेतु चुन सकें।
16. क्या आप ज्यादा बोलते हैं और कम सुनते हैं?
ईश्वर ने आपको एक मुंह और दो कान इसलिए दिए हैं कि आप जितना बोलें उससे दुगुना सुनें। ज्यादा बड़बड़ाने वाले लोग अपना प्रभाव जल्दी खो देते हैं। ज्यादा बोलना अपने सब रहस्य खोलने के समान होता है। ऐसे लोगों पर कोई विश्वास नहीं करता और ना ही इनकी बात कोई गंभीरता से सुने। मौन रहने से मूर्ख भी विद्वान की श्रेणी में आ जाते हैं।
17. क्या आप बढ़ा-चढ़ा कर बातें कहते हैं?
कई लोगों को इतना बढ़ा-चढ़ा कर बोलने की आदत होती है कि वो तुरंत पकड़े जाते हैं और लोग भले ही मुंह पर निंदा न करें परंतु पीठ पीछे वो सबसे बड़े मजाक के पात्र बनते हैं। जितना आपके पास हो, उतना ही बखान करें। सोचिए, क्या वाकई बढ़ा-चढ़ा कर बोलना या फेंकना जरूरी है?
18. क्या आप बात-बात पर हंसते हैं?
कई लोग हर बार वार्तालाप में हास्य पैदा करने की कोशिश करते हैं, बिना बात जोक्स सुनाते हैं। उनकी एक मजाकिया छवि बन जाती है और उनसे बुद्धिजीवी परहेज करने लगते हैं। हास्य उचित समय पर ही अच्छा लगता है।
19. क्या आप पीठ पीछे निन्दा करते हैं?
पीठ पीछे कही गई बात ज्यादा तेजी से फैलती है। अक्सर आपकी कही हुई मूल बात बदल जाती है, फसाद खडा हो जाता है और करीबी रिश्ते भी खत्म हो जाते हैं। आलोचना संयमित शब्दों में, अकेले में करें। वही पीठ पीछे कही गई प्रशंसा जादू सा असर करती है। यदि निंदा आवश्यक है तो पहले प्रशंसा करते हुए बात शुरू करें, सहजता से आलोचना करे और वापस सामान्य बातचीत से बात खत्म कर दें। निन्दा अकेले में करें। निन्दा सहज और संक्षिप्त शब्दों में करें। व्यक्ति की नहीं, कार्य की आलोचना कीजिए। निन्दा करने के पहले एक बार फिर सोच लीजिए, क्या वाकई निन्दा करना आवश्यक है?
20. तर्क से बचें।
तर्क और विवादों से बचें क्योंकि थोड़ा बढ़ने पर ये अहं का प्रश्न बन जाता है। याद रखें जब भी आप एक बहस में जीतते हैं, आप एक व्यक्ति को हारते हैं? यदि किसी विवाद की जीत वाकई में महत्त्व न रखती हो तो उसे अधर में छोड़ दीजिए। यह आपके बड़प्पन का परिचय होगा।
21. व्यक्तिगत आघात और धार्मिक व्यंग्य न करें।
किसी की शारीरिक कमी का मजाक न उड़ाएं। जैसे कुछ लोग लंगड़ा कर चलने वालों को लंगडू या मोटे पावर का चश्मा लगाने वाले को चश्मिश कहते हैं। गरीबी, अशिक्षा जैसे किसी भी मुद्दे पर किसी को चोट न पहुंचाएं। वाणी संभालकर बोलिए, ना है हाथ न पांव एक शब्द करे औषधि, एक शब्द करे घाव।
धर्म को सदैव बातचीत से दूर रखें। यदि शामिल करना हो तो उजले पहलुओं पर चर्चा करें। हर किसी की सामाजिक मान्यताएं अलग होती हैं, वार्तालाप में सदैव उनका सम्मान करें।
जग जीतने का, बस एक सफल हथियार ना निन्दा, ना चोट, बस वाणी में भर लो प्यार।
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